कुर्सी नहीं, जाति हटाइए — पहले अपने भीतर से, फिर समाज से
कभी कोई तस्वीर हमारी आंखों से गुजरती है और सीधा दिल में उतर जाती है। एक शिक्षक ज़मीन पर बैठा है, सामने उसकी डेस्क पर कंप्यूटर और फाइलें रखी हैं, लेकिन उसके पास बैठने को कुर्सी नहीं। न कोई शोर, न गुस्सा, न शिकायत। बस मौन, लेकिन ऐसा मौन जो चीख रहा था …