
रामसेतु या “आदम्स ब्रिज” को लेकर दशकों से विवाद जारी है।
कुछ लोग कहते हैं कि यह भगवान राम द्वारा बनवाया गया पुल है, जिसे अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने भी सैटेलाइट से देखा है और “man-made” माना है।
यह दावा सोशल मीडिया और WhatsApp यूनिवर्सिटी में खूब फैलाया गया — NASA की तस्वीरों के साथ।
दावा क्या है?
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NASA की उपग्रह तस्वीरों में समुद्र के बीच में एक स्ट्रक्चर/पुल जैसा दिखाई देता है।
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कहा गया कि NASA ने माना है कि यह “man-made” structure है, जो रामायण के समय में बनाया गया था।
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इसे भगवान राम के युग का सबूत बताया गया।

NASA की तस्वीरों में क्या है?

NASA ने 2002 में Terra और Aqua satellites के माध्यम से जो तस्वीरें ली थीं, उनमें Palk Strait में एक लंबी रेखा दिखाई देती है — जो भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के मन्नार द्वीप को जोड़ती है।
NASA ने क्या कहा?
“The image may show a natural formation of shoals between India and Sri Lanka… We cannot make any claims about the origin of the chain.”
📌 NASA ने कभी नहीं कहा कि यह “रामसेतु” है या मानव-निर्मित पुल है।
भूगोल और भूविज्ञान का मत
भारतीय भूविज्ञान संस्थान (GSI), समुद्री अध्ययन संस्थान (NIOT) और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की रिपोर्ट्स कहती हैं:
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यह स्ट्रक्चर रेत, चूना-पत्थर (limestone), और शैल (coral) का बना हुआ है।
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इसे “shoal chain” या “sandbar formation” कहा जाता है।
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यह प्राकृतिक रूप से बना समुद्री भू-आकृति (geomorphological structure) है।
📌 समुद्र की लहरें, ज्वार-भाटा और तलछट (sediment) इसे धीरे-धीरे बनाते हैं — ये हजारों साल में विकसित होता है।

“मानव निर्मित” होने का कोई सबूत?
नहीं।
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ना कोई पुरातात्विक अवशेष
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ना कोई धातु, औज़ार, या शिल्प
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ना कोई संरचनात्मक वास्तु योजना
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और ना ही कोई साहित्यिक विवरण जो इसे इंजीनियरिंग निर्माण सिद्ध कर सके
रामायण में इसका वर्णन ज़रूर है — पर वह धार्मिक महाकाव्य है, इतिहास या इंजीनियरिंग रिपोर्ट नहीं।

“NASA ने भी माना था” – इस भ्रम की उत्पत्ति कहाँ से हुई?
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2002 की NASA तस्वीरों को देखकर कई राष्ट्रवादी संगठनों ने दावा किया कि NASA ने रामसेतु को “ancient bridge” माना है।
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NASA ने स्पष्ट रूप से इसका खंडन किया था — उन्होंने कहा:
“NASA does not certify or validate historical or religious interpretations of satellite images.”
📌 फिर भी मीडिया और सोशल मीडिया ने झूठ को बार-बार दोहराया, और लोगों ने उसे सच मान लिया।
नुकसान क्या है?
- वैज्ञानिक एजेंसियों की छवि को नुकसान: NASA जैसी प्रतिष्ठित संस्था के नाम का ग़लत इस्तेमाल।
- धार्मिक भावनाओं की वैज्ञानिक सत्यापन की ज़रूरत नहीं: आस्था को विज्ञान के ढांचे में फिट करना बेमानी है।
- वास्तविक वैज्ञानिक रिसर्च पर संदेह: जब लोग ये सोचने लगते हैं कि "NASA भी मान गया" तो वे झूठी चीजों पर भरोसा करने लगते हैं।
वैज्ञानिक और संवैधानिक दृष्टिकोण
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A(h):
“It shall be the duty of every citizen to develop the scientific temper…”
निष्कर्ष: आस्था रखें, पर तथ्यों का अपमान न करें
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रामसेतु के धार्मिक महत्व से इनकार नहीं है।
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लेकिन NASA का नाम जोड़कर इसे ऐतिहासिक साबित करना गलत है और असावधान प्रचार है।
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विज्ञान को कल्पना से अलग रखना ही वैज्ञानिक चेतना का मूल है।