Thoughts

भारत में शिक्षा: अकादमिक सफलता से परे नैतिक बुद्धिमत्ता की आवश्यकता

भारत में शिक्षा को अक्सर केवल परीक्षाओं में अच्छे अंक लाने और करियर बनाने के लिए देखा जाता है। माता-पिता, शिक्षक, और समाज ही नहीं, विद्यार्थी भी अकादमिक उपलब्धियों को सफलता का पैमाना मानते हैं। लेकिन क्या शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित है? क्या इ…

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क्या होता यदि भारत में डॉ भीम राव अम्बेडकर नहीं होते?

यह प्रश्न केवल किसी महान व्यक्ति की अनुपस्थिति की कल्पना नहीं है, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक आत्मा, सामाजिक न्याय, और राष्ट्रीय एकता की जड़ों तक जाता है। यदि डॉ. भीमराव अम्बेडकर न होते, तो शायद भारत वह देश नहीं बन पाता जो आज है — एक ऐसा राष्ट्र जो…

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गांधी एक महात्मा लेकिन हम कौन..???

आज का मेरा लिखने का विषय कुछ अलग है, लेकिन तथ्यपूर्ण व तर्कपूर्ण  है। जिसमें एक सार्थक संदेश, विचार, अभिव्यक्ति सभी का मिलाजुला सा विवरण स्पष्ट नजर आये तो पसंद कीजियेगा।  जी हाँ, और कोई नहीं बल्कि हमारे देश के उस महान आत्मा की बात में करने ज…

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सफलता कैसे..?? जबतक धैर्य नहीं

आज का समय एक आधुनिक समय है। हर कोई कम समय में कुछ न कुछ कर दिखाना चाहता है। युवा पीढी से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वे तुरंत ही कम समय में कुछ कर दिखायें। जितनी भी सफलता उन्हे लेनी है वे जल्दी ही प्राप्त कर लें। माता-पिता में आज कल ये प्रवृत्ति…

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क्या गरीब सवर्णों को भी आरक्षण के दायरे में लाया जाना चाहिये?

दलीलें कुछ भी दी जाती रही हों या विरोध में कितनी ही बातें होती रहीं हों। हम यह भी जानते हैं कि लगभग 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा लोग हमेशा से सामाजिक आधार पर आरक्षण का समर्थन नहीं करते । वजह कुछ भी दी जाती रहें, लेकिन आरक्षण को लेकर अपनी सोच का विस्…

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घुटता है दम दम.. घुटता है :(

दिल्ली इन दिनों बड़ी खतरनाक तरह से हुई प्रदूषित हुई हवा की मार झेल रहा है। याद है मुझे जब 2016 में दिल्ली में ऑड-ईवन को कुछ समय के लिये ट्रायल के तौर पर लागू किया था.. तब भी शायद pm2.5 270-300 के आस पास रहा होगा। लेकिन दीपावली के बाद से जो प्र…

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इस बार की दिवाली रही ज्यादा ज़हरीली.. :(

रविवार की दीपावली बडे धूम-धाम से मना लेने के बाद हम लोग आज इस विषय पर चर्चा करते नजर आ रहें हैं कि दिल्ली की हवा में दीपावली पर फोडे पटाखों के कारण जहर घुल गया है। अब किसी त्योहार को मानाने के तौर-तरीके ऐसे तो कम से कम नहीं होने चाहिए कि हम अप…

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रोशनी का त्योहार - दीपावली

हमारे भारत देश में दीपावली हमेशा से ही एक बड़े धूम धाम से मनाने वाले त्योहारों में से एक रहा है। इस दिन के आने से पहले ही लोग घरों में सफाई, साज सजावट, रंग-रोगन करने-कराने लगते हैं। गरीब हो या अमीर सभी अपने घर को इस दिन साफ़ दिखाई देने में यकीन …

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बेरोज़गारी और सरकार का रवैया

सभी लोग जानते हैं भारत में नौकरी पा लेना एक किला जीतने जैसा काम समझा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जितने लोग हैं उतनी नौकरियां हैं नहीं, और जितनी नौकरियां निकलती हैं उतने से कुछ ख़ास होने वाला नहीं है। आज हो ऐसा चला है कि बेरोजगारी खूब जोर पकड़ …

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रावण आखिर कहाँ नहीं है?

हमारा आज का समाज बेहद तेज व अत्याधुनिक तो हुआ है, पर इसी तेजी ने हम सब लोगों में अनेकों बुराइयां, गलत सोच, अहम्, अहंकार और ना जाने क्या क्या भर दिया। जहाँ श्री राम के युग वाले रावण के दस सिर थे, लेकिन अब तो लगता है कि इस युग में तो रावण के सिर…

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हैं त्योहार पर किनके ?

भारत देश विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों, परम्पराओं, मान्यताओं, भाषाओं का देश है। इसी कारण हमारे देश की चर्चा पूरे विश्व में एक मिसाल के तौर पर देखी जाती है। विश्व में शायद ही ऐसा कोई देश भारत जैसा मिले पर मुमकिन ही नहीं होता।  इसी बीच त्योहारों…

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महात्मा गांधी के लिये हमारे आधुनिक विचार

महात्मा गाँधी बचपन में मेरे दिल और दिमाग पर छाए रहते थे। फिर ना जाने कैसे कैसे समाज में घुलने मिलने के साथ ही मेरे पूरे दर्शन, ज्ञान और विचार कब गांधी के खिलाफ बोलने लगे ये मैं खुद भी नहीं जान पाया। जाहिर है ये सब मेरे अंदर आने वाले द्वेष का …

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तनाव का हल: जंग, शांति या कुछ और

उरी में हुए आतंकी हमले के बाद से रोज रोज भारत पाक के युद्ध अब तो एक बार हो ही जाने की बातें गली-नुक्कड़, ऑफिसों, शिक्षण संस्थानों सहित फेसबुक, ट्विटर और तमाम सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर दिखाई दे रहीं हैं।  नए नए नौजवान तैयार बैठे हैं लडने को…

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ये पाक नहीं नापाक है

उरी में हमारे सेना के प्रशासनिक ठिकाने पर आतंकी हमले से एक बार फिर पाकिस्तान के नापाक इरादे साफ़ होते हैं। हमारे सत्रह जवान शहीद हो गए और करीब तीस से अधिक घायल भी। इन नापाक आतंकियों ने हमले का वक़्त भी वो चुना जब हमारे जवान सो रहे थे और सामने से आ…

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स्त्रियों की स्वतंत्रता की मांग करतीं दो फ़िल्में : "पिंक और पार्चड"

समय बदलता है, कहानियाँ बदलती हैं, लेकिन अफसोस कि सिनेमा के परदे पर अक्सर बदलाव की गति धीमी ही रही है — खासकर तब, जब बात महिलाओं की हो। हिंदी फिल्मों में लंबे समय तक नायिका का किरदार सिर्फ 'रिक्त स्थान पूर्ति' तक ही सीमित रहा — एक सजा…

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कुछ अतिप्रतिक्रिया आज के आधुनिक परिधान पर

बेहद सोच व चिंतन करने के पश्चात ही मैंने यह लेख लिखने का विचार किया है। यदि किसी को इससे कोई आपत्ति होती है तो कृपया मुझे क्षमा करना। जी हाँ, क्षमा पहले मांग लेने में ही बेहतरी है। जब बात परिधान की हो तो इस विषय में महिलाओं के परिधान व पहनावे …

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विज्ञापनों का खेल

जहाँ, जिस तरफ भी देखो वहीं उलझन सी हर ओर नज़र आती है, चाहे वह राजनीति के विषय में हो, समाज के विषय में हो या स्वयं खेल के विषय में ही क्यों ना हो। कभी-कभी लगता है कि शायद यहाँ तो कम से कम उलझनें नहीं होंगी, लेकिन फिर बाद में पता लगता है कि व…

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औपचारिकताएं

ऐसा लग रहा है जैसे बहुत समय हो चला है बिना लिखे, पर वास्तव में ऐसा बिलकुल नहीं है। बहुत से लेख अधूरे हैं बस वे पूरे करने बाकी हैं। और पूरे होते ही आपको वे साइट पर भी दिखाई देने लगेंगे।  आज का खास विषय है -  औपचारिकताएं , जी हाँ, आजकल जहा…

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पैन कार्ड के नंबर में हर अंक का होता है कुछ मतलब

pic credits :google images  बैंक में अकाउंट खुलाने जाते हैं तो बाकि जानकारियों और पहचान पत्र के बाद वे सबसे पहले यही पूछते हैं कि पैन कार्ड है कि नहीं ? आज कल पैन कार्ड को लोग पहचान के रूप में इस्तेमाल करते हैं और सबसे जरुरी इनकम टैक्स द्वा…

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मदर्स डे की खुशियाँ, फोरमेलिटी और आधुनिकता

#ग़ुलाम_मानसिकता की विडम्बना तो देखिए, हम अपनी #माँ से प्यार करते है ये बात साबित करने के लिए हमें एक विशेष दिन (mother's day) निर्धारित करना पड़ा है। वैसे सभी को #HappyMothersDay 😰😰😥 मैं हैरान हूँ ये देखकर कि लोग मदर्स ड…

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