रामायण के चरित्र हनुमान जी भारतीय संस्कृति में शक्ति, भक्ति और साहस के प्रतीक हैं।
उनके उड़कर लंका जाने, सूर्य को निगलने और हिमालय उठाने जैसे वर्णन बचपन से ही लोगों की स्मृति में हैं।
लेकिन हाल के वर्षों में कुछ राष्ट्रवादी विचारकों और सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा ने यह दावा करना शुरू किया कि:
“हनुमान जी पहले अंतरिक्ष यात्री थे। उन्होंने उड़ान भरी, दूसरे ग्रह तक गए और ‘ऑक्सीजन मास्क’ जैसी तकनीक का प्रयोग किया।”
दावा क्या है?
कुछ राष्ट्रवादी विचारक और यूट्यूब चैनल दावा करते हैं:
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हनुमान जी “फ्लाइंग सूट” पहनकर अंतरिक्ष गए।
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उनके पास “संचालित यंत्र” (propulsion device) था।
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वे “मार्स” या “सूर्य” तक गए, मतलब उन्होंने outer space travel किया।
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उनके पास “oxygen supply” और “communication devices” थे।
📌 और फिर यही झूठी बातें सोशल मीडिया पर “भारत ने पहले अंतरिक्ष की खोज की थी” जैसे संदेशों के साथ फैलाई जाती हैं।
क्या ऐसा रामायण में है?
रामायण, विशेषकर तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ और वाल्मीकि रामायण, में हनुमान जी के उड़ने का उल्लेख है — जैसे:
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उन्होंने समुद्र पार किया।
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सूर्य को फल समझकर निगल लिया।
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लंका में आग लगाई।
क्या उड़ना अंतरिक्ष यात्रा के बराबर है?
नहीं।
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“उड़ान” का मतलब हवा में उठना होता है — पक्षी भी उड़ते हैं।
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लेकिन अंतरिक्ष यात्रा (space travel) में पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर जाना होता है, जिसके लिए अत्यधिक गति (11.2 km/s) और तकनीक चाहिए।
📌 हनुमान जी के उड़ान वर्णन में कहीं भी शून्य गुरुत्वाकर्षण, तापमान नियंत्रण या ऑर्बिटल इंजीनियरिंग का कोई उल्लेख नहीं है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
🚫 कोई तकनीकी विवरण नहीं:
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न propulsion system
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न fuel source
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न heat shield
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न G-force resistance
🔍 अंतरिक्ष यान (Spacecraft) की न्यूनतम आवश्यकताएँ:
आवश्यकता | विवरण |
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गति | 40,000 km/h से अधिक (escape velocity) |
तापमान नियंत्रण | बाहर -200°C से +200°C तक होता है |
life support system | oxygen, CO₂ removal, nutrition, etc. |
shield | cosmic rays और माइक्रोमिटीऑराइट्स से सुरक्षा |
हनुमान जी की कहानियों में इनमें से किसी का भी उल्लेख नहीं है।
"सूर्य को निगल जाना" का अर्थ?
यह एक काव्यात्मक रूपक है — बाल्यावस्था में हनुमान जी ने सूर्य को फल समझकर निगल लिया, ऐसा वर्णन है।
➡️ इसका उद्देश्य शक्ति का प्रदर्शन है, विज्ञान नहीं।
फिर ऐसे दावे क्यों फैलते हैं?
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राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग यह दिखाना चाहते हैं कि “भारत पहले से सब जानता था।”
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विज्ञान की जटिलताओं को धार्मिक संदर्भों में सरल बनाकर पेश करना आसान होता है।
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इससे धर्म को विज्ञान के ऊपर बैठाने का मनोवैज्ञानिक प्रयास होता है।
लेकिन यह वास्तविक विज्ञान और तर्क को नुकसान पहुँचाता है।
संवैधानिक चेतना और वैज्ञानिक सोच
भारत के संविधान में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की बात कही गई है (अनुच्छेद 51A(h))।
📌 पौराणिक पात्रों को वैज्ञानिक दर्जा देना, वैज्ञानिक चेतना को अपमानित करना है।
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हनुमान जी आस्था के विषय हो सकते हैं — उन्हें श्रद्धा से पूजा जा सकता है।
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लेकिन उन्हें "पहला अंतरिक्ष यात्री" कहना पूरी तरह मिथक और झूठ है।
निष्कर्ष: श्रद्धा का सम्मान करें, पर विज्ञान का अपमान नहीं
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हनुमान जी भारतीय संस्कृति में महान प्रतीक हैं — लेकिन उन्हें नासा का पूर्वज नहीं बना सकते।
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विज्ञान को अपने तर्क, प्रयोग और प्रमाण की कसौटी पर ही परखा जाना चाहिए।
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श्रद्धा और विज्ञान — दोनों अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं, पर आपस में घालमेल नहीं।