पहलगाम हमला: सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं, बल्कि इंसानियत पर धब्बा


कश्मीर की वादियाँ, जहाँ हवा में अमन का संगीत बहता है, जहाँ बहती झीलों में सूरज की किरणें झिलमिलाती हैं, वहाँ अचानक गोलियों की आवाज़ गूंजती है, चीखें गूंजती हैं और खून की लकीरें उस धरती पर बहती हैं, जो कभी प्रेम और शांति की मिसाल मानी जाती थी।

22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की खूबसूरत घाटियों में एक ऐसा ही लहूलुहान दृश्य उभरा — जहाँ आतंकियों ने 26 निर्दोष भारतीय पर्यटकों की नृशंस हत्या कर दी

यह हमला सिर्फ एक और आतंकी घटना नहीं था।
यह उस बर्बर सोच की परिणति थी जो धर्म के नाम पर मौत बाँटती है, जो इंसान की हँसी और सुकून को बंदूक के बल कुचल देती है।


क्या हुआ उस दिन पहलगाम में?

घटना स्थल: बाइसारन घाटी, जो ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ के नाम से प्रसिद्ध है।
पर्यटक: भारत के विभिन्न राज्यों से आए लोग — छात्र, शिक्षक, परिवार, युवा जोड़े और बुज़ुर्ग — जो सिर्फ वादियों का सौंदर्य देखने आए थे।

लेकिन अचानक छिपे हुए आतंकी बाहर निकलते हैं
वे ना पासपोर्ट पूछते हैं, ना टिकट।
वे पूछते हैं —

“क्या तुम मुसलमान हो?”
“कलमा सुनाओ!”

जो जवाब नहीं दे पाता, उसे गोली मार दी जाती है
जो हिन्दू था, उसे ‘काफिर’ कहकर मार दिया गया।

इस हमले में किसी बस को नहीं घेरा गया, ना ही यह कोई अमरनाथ यात्रा थी — यह सीधे-सीधे बाइसारन में घूमने गए पर्यटकों को निशाना बनाकर किया गया हमला था
घाटी की हरियाली उस दिन खून के छींटों से लाल हो गई थी।


प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही

कुछ चश्मदीदों ने जैसे-तैसे जान बचाई।
एक घायल युवक ने कहा:

“हमें रोक कर पूछा गया कि क्या हम मुस्लिम हैं। कुछ को कलमा बोलने को कहा गया, जो नहीं बोल सके, उन्हें वहीं ढेर कर दिया गया। हम मदद के लिए चीखते रहे, लेकिन पहाड़ों में कोई नहीं सुनता...”

एक महिला पर्यटक को, जो खुद छुप गई थी, अपने पति और बेटे की लाशें वापस आने पर पहचाननी पड़ीं
उसकी आंखें अब भी रो नहीं रहीं, क्योंकि उनका रोना भी लहू में डूब गया है।


यह हमला क्यों था असाधारण?

  • कोई राजनीतिक मांग नहीं थी।
    यह हमला न तो कश्मीर को अलग करने के नाम पर था और न ही किसी खास विचारधारा के लिए। यह सिर्फ धर्म के नाम पर हुआ नरसंहार था।
  • पहली बार टूरिज्म सीज़न पर हमला हुआ।
    पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिशों के बीच यह हमला भारत की आर्थिक, सांस्कृतिक और सामूहिक चेतना पर भी हमला था
  • पूरी तरह योजनाबद्ध नरसंहार
    आतंकियों को पता था कि कौन-कौन आया है।
    उन्होंने पहले से घाटी में एम्बुश तैयार कर रखा था।
    यह कोई एक्सीडेंट या अचानक गोलीबारी नहीं थी, बल्कि योजनाबद्ध "टार्गेटेड किलिंग" थी।

पाकिस्तान का क्या रोल था?

अब तक की जांच और इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स ये साफ़ कर चुकी हैं कि हमलावरों को एलओसी के पार से निर्देश और हथियार मिले थे
ISPR और पाकिस्तानी मीडिया ने पहले इस पर चुप्पी साधी, और बाद में उल्टा इसे "भारत का फेक नरेटिव" बताने की कोशिश की।

यहाँ सवाल ये है कि:

क्या पाकिस्तान के समर्थन के बिना इतने भयानक स्तर की आतंकी घुसपैठ संभव है?
क्या भारत अब फिर एक 'मूक शोक' मनाएगा, या ठोस बदला लिया जाएगा?


सरकार की प्रतिक्रिया: शांत नहीं, ठोस

घटना के 4 घंटे के भीतर प्रधानमंत्री ने CCS (कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी) की आपात बैठक बुलाई।
भारत ने तुरंत:

  • पाकिस्तान के नागरिकों को 48 घंटे के अंदर भारत छोड़ने का आदेश दिया

  • सिंधु जल संधि स्थगित कर दी

  • अटारी बॉर्डर पर अस्थायी तौर पर आवागमन रोक दिया

  • पाक उच्चायोग की गतिविधियों पर सीमा तय की

  • भारतीय राजनयिकों को पाकिस्तान से बुलाया गया

साथ ही, सेना को स्पष्ट संकेत मिला:

"फ्री हैंड"


देश की जनता में आक्रोश

देशभर में लोग सड़कों पर उतरे।
हर राज्य, हर शहर, हर कॉलेज और हर गांव में #PahalgamMassacre ट्रेंड कर रहा था।
लोगों ने मांग की:

  • अब कड़ी निंदा नहीं, सीधी सर्जिकल स्ट्राइक चाहिए

  • सिर्फ दफनाने की तस्वीरें नहीं, बदले की तस्वीरें चाहिए


मानवता का सवाल

ये हमला भारत या हिन्दुओं पर नहीं, पूरे मानव समाज पर हमला था
एक बच्ची जो अपनी मां के साथ आई थी, अब अनाथ हो चुकी है।
एक युवक जो अपनी नई शादी के बाद हनीमून पर गया था, अब तिरंगे में लिपटा वापस आया।

“क्या किसी की मुस्कुराहट की भी जात होती है?”
“क्या कोई झील, कोई फूल, कोई आकाश इतना धर्म पूछता है?”


## भारत अब चुप नहीं बैठेगा

पहलगाम की घाटियों में बहता खून हमें चीख-चीखकर याद दिलाता है कि कट्टरपंथ और आतंकवाद अब सहन से बाहर है
भारत सिर्फ अपने वीरों को दफनाने वाला देश नहीं है, यह अपराधियों को उनके घर में घुसकर मारने वाला राष्ट्र भी है।

यह लेख न केवल पीड़ितों को श्रद्धांजलि है, बल्कि एक स्पष्ट संदेश है:

अबकी बार – जवाब सिर्फ बयान से नहीं, कार्रवाई से होगा।

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