मोंटेस्क्यू : स्वतंत्रता का संतुलन और शक्तियों का विभाजन सिद्धांत

राजशाही शासन के विरुद्ध खड़ा हुआ एक चिंतक जिसने सबसे पहले यह कहा कि सत्ता का केंद्र एक व्यक्ति या संस्था नहीं हो सकती। लोकतंत्र की आत्मा है "शक्ति का विभाजन"। यह विचार देने वाले थे शार्ल लुई द सेकोंदा, बैरन डी ला ब्रेद एट डी मोंटेस्क्यू — संक्षेप में मोंटेस्क्यू

मोंटेस्क्यू का यह विचार आधुनिक संविधान, विशेषकर अमेरिका, भारत, फ्रांस और ब्रिटेन के लोकतंत्रों की रीढ़ बन चुका है।


मोंटेस्क्यू का जीवन परिचय (1689–1755)

  • जन्म: 18 जनवरी 1689, फ्रांस

  • मूल नाम: Charles-Louis de Secondat, Baron de Montesquieu

  • प्रमुख कृतियाँ:

    • Persian Letters (1721)

    • The Spirit of the Laws (1748)

उन्होंने यूरोप, इंग्लैंड और इटली की यात्रा करके विभिन्न शासन प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन किया और फिर 'शासन की आत्मा' को खोजने का प्रयास किया।


मोंटेस्क्यू के राजनीतिक विचार

1. मानव प्रकृति की समझ

मोंटेस्क्यू ने माना कि मनुष्य में सत्ता पाने की स्वाभाविक इच्छा होती है।

"Power corrupts, and absolute power corrupts absolutely."

2. स्वतंत्रता की परिभाषा

मोंटेस्क्यू के अनुसार, स्वतंत्रता का अर्थ है — “वह शक्ति जो कानूनों के तहत वह कर सके जो वह करना चाहता है, और वह न करे जो कानून मना करता है।”

स्वतंत्रता मनमानी नहीं, बल्कि सुव्यवस्थित और संतुलित शासन के अधीन जीवन है।


मोंटेस्क्यू का सबसे प्रसिद्ध सिद्धांत: शक्तियों का विभाजन (Separation of Powers)

इस सिद्धांत के तीन भाग:

शक्तिकार्यसंस्था
विधायिकाकानून बनानासंसद
कार्यपालिकाकानून लागू करनासरकार
न्यायपालिकाकानून की व्याख्या और न्याय देनान्यायालय

उद्देश्य:
किसी एक संस्था के पास इतनी शक्ति न हो कि वह तानाशाही बना ले।
सभी शक्तियाँ एक-दूसरे पर नियंत्रण रखें, ताकि सत्ता का संतुलन बना रहे।

'Check and Balance' का सिद्धांत

मोंटेस्क्यू का मानना था कि:

  • यदि न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होगी, तो स्वतंत्रता एक भ्रम बन जाएगी।

  • कार्यपालिका यदि विधायिका को नियंत्रित करेगी, तो कानून मनमाने बनेंगे।

  • विधायिका यदि कार्यपालिका पर दबाव डालेगी, तो प्रशासन चरमरा जाएगा।

इसलिए तीनों शक्तियों को एक-दूसरे की निगरानी करनी चाहिए — Checks and Balances


तुलनात्मक विश्लेषण

दार्शनिकमुख्य विचारशासन पर प्रभाव
होब्सतानाशाही संप्रभुनिरंकुश राज्य
लॉकस्वतंत्रता व निजी संपत्ति की सुरक्षाउदार राज्य
रूसोलोक इच्छा का शासनप्रत्यक्ष लोकतंत्र
मोंटेस्क्यूशक्तियों का संतुलनसंवैधानिक लोकतंत्र

'The Spirit of the Laws' की विशेषताएँ

  • मोंटेस्क्यू ने 20 वर्षों के शोध के बाद 1748 में यह ग्रंथ लिखा।

  • इसमें उन्होंने जलवायु, अर्थव्यवस्था, संस्कृति और समाज की विविधताओं को ध्यान में रखकर कानूनों की व्याख्या की।

  • उन्होंने कहा कि “हर समाज को उसकी स्थिति के अनुसार कानून मिलने चाहिए।”

उदाहरण:

  • गर्म प्रदेशों में लोग आलसी और उदासीन होते हैं, इसलिए कठोर कानून चाहिए।

  • ठंडे देशों में लोग ऊर्जावान होते हैं, वहां लचीले कानून बेहतर काम करते हैं।


आलोचना

  • अत्यधिक सामान्यीकरण:
    जलवायु के आधार पर कानूनों की व्याख्या को कई विद्वानों ने अति सरलीकरण कहा।
  • प्रशासनिक जटिलता:
    कुछ आलोचकों का मत था कि शक्तियों का अत्यधिक विभाजन शासन को धीमा और अक्षम बना सकता है।
  • ब्रिटिश शासन की अतिरंजना:
    मोंटेस्क्यू ने जिस ब्रिटिश व्यवस्था की प्रशंसा की, वह असल में “संसदीय सर्वोच्चता” थी, ना कि शक्तियों का स्पष्ट विभाजन।

मोंटेस्क्यू का आधुनिक प्रभाव

✅ अमेरिका का संविधान:

  • अमेरिका में राष्ट्रपति (कार्यपालिका), कांग्रेस (विधायिका), और सुप्रीम कोर्ट (न्यायपालिका) — मोंटेस्क्यू के सिद्धांतों पर आधारित हैं।

✅ भारत का संविधान:

  • अनुच्छेद 50: राज्य और न्यायपालिका के बीच अलगाव का समर्थन करता है।

  • राष्ट्रपति, संसद और न्यायपालिका के अलग-अलग अधिकार मोंटेस्क्यू के सिद्धांत पर आधारित हैं।

✅ वैश्विक लोकतंत्र:

  • फ्रांस, जर्मनी, जापान, कनाडा जैसे देशों के संविधानों में शक्तियों के विभाजन की स्पष्ट छाया देखी जा सकती है।


मोंटेस्क्यू और वर्तमान भारत

क्षेत्रउदाहरण
विधायिकासंसद कानून बनाती है
कार्यपालिकाप्रधानमंत्री व मंत्री परिषद कानून लागू करते हैं
न्यायपालिकासुप्रीम कोर्ट कानून की व्याख्या करता है

हालांकि कई बार न्यायपालिका के कार्यपालिका में हस्तक्षेप (जैसे एक्टिविज़्म), या विधायिका द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति जैसे मुद्दे इस संतुलन को चुनौती देते हैं, फिर भी संविधान में स्पष्ट रूप से शक्तियों का विभाजन सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है।


निष्कर्ष

मोंटेस्क्यू ने लोकतंत्र को संस्थागत रूप दिया। उन्होंने बताया कि सत्ता का केंद्रीकरण अंततः स्वतंत्रता को समाप्त कर देता है।
उनका यह कथन आज भी उतना ही सार्थक है:

“स्वतंत्रता तब होती है जब शक्ति सीमित हो, बँटी हो और उत्तरदायी हो।”

लोकतंत्र के स्तंभों की मजबूती तभी संभव है जब वे एक-दूसरे को न तो गिराएँ, न ही दबाएँ — बल्कि संतुलन में एक-दूसरे को नियंत्रित करें। यही मोंटेस्क्यू की सबसे बड़ी शिक्षा है।


संदर्भ सूची:

1. Montesquieu, The Spirit of the Laws, 1748
2. Sabine, George. A History of Political Theory
3. Ernest Barker, Principles of Social and Political Theory
4. Indian Constitution – Article 50, Judiciary-Executive Separation
5. U.S. Constitution – Checks and Balances

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