
“हमेशा सवाल करो, सत्ता से डरो मत” — अगर अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों की आत्मा कोई एक विचारक रहा, तो वह था थॉमस पेन।
जीवन परिचय
-
जन्म: 9 फरवरी 1737, इंग्लैंड
-
मृत्यु: 8 जून 1809, न्यूयॉर्क, अमेरिका
-
पेशा: क्रांतिकारी लेखक, राजनीतिक विचारक, मानवाधिकार समर्थक
-
प्रमुख रचनाएँ:
-
Common Sense (1776)
-
The Rights of Man (1791)
-
The Age of Reason (1794)
-
Agrarian Justice (1797)
-
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
वह अमेरिका गए, जहाँ उन्होंने Common Sense लिखकर ब्रिटेन से स्वतंत्रता की मांग को जन आंदोलन में बदल दिया।
थॉमस पेन के राजनीतिक विचार
1. प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत (Natural Rights)
-
पेन का मानना था कि हर मनुष्य जन्म से ही स्वतंत्र है।
-
उसने राज्य या शासक को कोई “ईश्वरीय अधिकार” नहीं सौंपा।
“Government is a necessary evil.”
-
अर्थात् — सरकार अनिवार्य है, लेकिन एक बुराई है, जिसे सीमित और उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए।
2. जनतंत्र का समर्थन (Support for Democracy)
-
उन्होंने राजतंत्र को मनुष्यता के विरुद्ध बताया और प्रजातंत्र को “विवेक की सरकार” कहा।
-
जनता की भागीदारी ही शासन की वैधता का आधार होनी चाहिए।
“The law ought to be king, not the king be the law.”
यह विचार अमेरिकी और बाद में फ्रांसीसी क्रांति का आधार बना।
3. Common Sense (1776): अमेरिका की आज़ादी का घोषणापत्र
इस छोटे से पैम्फलेट ने लाखों अमेरिकियों को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता की आवश्यकता पर सोचने को मजबूर किया।
मुख्य तर्क:
-
ब्रिटेन, अमेरिका पर शासन करने के योग्य नहीं है क्योंकि वह हजारों मील दूर है।
-
कोई भी राजा जनता से ऊपर नहीं हो सकता — Hereditary Monarchy एक अंधविश्वास है।
-
अमेरिका को स्वतंत्र राष्ट्र बनना चाहिए, जो “मनुष्य की गरिमा” को सर्वोपरि माने।
प्रभाव:
-
Common Sense की 5 लाख प्रतियाँ 1776 में बिकीं — यह उस समय की सबसे तेज़ बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी।
-
इससे स्वतंत्रता की भावना आम जनता तक पहुँची।
4. The Rights of Man (1791): मानवाधिकार का उद्घोष
-
यह फ्रांसीसी क्रांति के समर्थन में लिखी गई थी।
-
पेन ने बुर्जुआ वर्ग, सामंती विशेषाधिकार, और पादरी वर्ग के सत्ता में वर्चस्व पर हमला किया।
-
उन्होंने सामाजिक कल्याण राज्य (Welfare State) की अवधारणा दी:
-
वृद्धावस्था पेंशन
-
शिक्षा के अधिकार
-
भूमि सुधार
-
5. The Age of Reason (1794): धर्म की आलोचना
-
पेन का मानना था कि धार्मिक संस्थाएँ सत्ता और भय का हथियार बन चुकी हैं।
-
वह Deism में विश्वास रखते थे — यानी एक ईश्वर है जिसने दुनिया बनाई, लेकिन organized religion झूठ और पाखंड है।
“My own mind is my own church.”
इस पुस्तक के लिए उन्हें अमेरिका में भी काफ़ी आलोचना झेलनी पड़ी।
तुलनात्मक दृष्टिकोण
विचारक | प्रमुख दृष्टिकोण | शासन की वैधता का आधार |
---|---|---|
होब्स | अनुबंध से राज्य की उत्पत्ति | शक्तिशाली राज्य (Leviathan) |
लॉक | सीमित सरकार, संपत्ति का अधिकार | प्राकृतिक अधिकार |
थॉमस पेन | मानव की गरिमा, धर्म-राज्य अलगाव | जनता की भागीदारी |
रूसो | समानता और आम-इच्छा का सिद्धांत | सामूहिक इच्छा (General Will) |
आलोचना और चुनौतियाँ
-
धर्म पर तीव्र आलोचना:
-
अमेरिका जैसे ईसाई बहुल देश में The Age of Reason के कारण उन्हें “नास्तिक” कहकर बहिष्कृत किया गया।
-
-
क्रांतिकारी विचारों के कारण खतरे में जान:
-
फ्रांस में उन्हें जेल भेजा गया क्योंकि उन्होंने लुई XVI की फांसी का विरोध किया था।
-
-
आधुनिक वामपंथियों द्वारा अति-व्याख्या:
-
कुछ विद्वान मानते हैं कि पेन का समर्थन केवल “न्यायपूर्ण स्वतंत्रता” के लिए था, न कि सर्वहारा क्रांति के लिए।
-
आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता
-
भारत का संविधान:
-
पेन के “स्वाभाविक अधिकार” का प्रभाव हमें अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (स्वतंत्रता) और 21 (जीवन का अधिकार) में देखने को मिलता है।
-
-
लोकतांत्रिक विरोध का नैतिक आधार:
-
पेन के विचार आज भी सिविल नाफरमानी, RTI, और लोकपाल आंदोलनों में जीवित हैं।
-
-
धर्म और राज्य का पृथक्करण:
-
भारत की धर्मनिरपेक्षता और अमेरिका की church-state separation — दोनों ही पेन के दर्शन की देन माने जा सकते हैं।
-
निष्कर्ष
"अगर मैं चुप रहा, तो मैं गुलामी के पक्ष में खड़ा हूँ" — यही था पेन का दर्शन।