
18वीं शताब्दी का यूरोप राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल से गुज़र रहा था। सामंतवाद, राजतंत्र और चर्च के प्रभाव ने आम जन की आवाज़ को दबा रखा था। इसी माहौल में एक आवाज़ उठती है — “मनुष्य जन्म से स्वतंत्र है, परन्तु वह हर जगह जंजीरों में जकड़ा है।” यह आवाज़ थी Jean-Jacques Rousseau की। रूसो न केवल फ्रांसीसी क्रांति के वैचारिक पिता माने जाते हैं, बल्कि आधुनिक लोकतंत्र, सामाजिक समानता और नैतिक शिक्षा के अग्रदूत भी हैं।
रूसो का जीवन परिचय (1712–1778)
-
जन्म: 28 जून 1712, जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड)
-
पेशा: दार्शनिक, लेखक, संगीतकार, शिक्षाशास्त्री
-
प्रमुख कृतियाँ:
-
The Social Contract (1762)
-
Émile, or On Education (1762)
-
Discourse on the Origin of Inequality (1755)
-
Confessions (1770)
-
रूसो का जीवन एक संघर्षपूर्ण यात्रा थी — एक अनाथ बालक, फिर खानाबदोश, और अंततः यूरोप के सबसे क्रांतिकारी चिंतकों में एक।
रूसो की राजनीतिक दृष्टि
1. प्राकृतिक अवस्था (State of Nature)
रूसो के अनुसार, मनुष्य मूल रूप से स्वतंत्र, शांतिप्रिय और नैतिक होता है। वह सामूहिक कल्याण में विश्वास करता है। लेकिन जैसे-जैसे संपत्ति और समाज विकसित हुए, वैषम्य, ईर्ष्या और सत्ता की लालसा उत्पन्न हुई।
“Civilization is what corrupted the naturally good man.”
2. असमानता की उत्पत्ति
रूसो ने असमानता को दो रूपों में बाँटा:
-
प्राकृतिक असमानता — उम्र, स्वास्थ्य, बल, आदि
-
सांस्कृतिक असमानता — संपत्ति, अधिकार, सम्मान
उनके अनुसार संपत्ति के स्वामित्व ने ही दासता और सामाजिक बंटवारे की नींव रखी।
3. सामाजिक अनुबंध (Social Contract)
रूसो की The Social Contract राजनीतिक विचारधारा की आधारशिला है।
मुख्य सिद्धांत:
-
सार्वजनिक इच्छा (General Will):सभी नागरिकों की सामूहिक इच्छा, जो संपूर्ण समाज के हित में होती है। यह निजी स्वार्थ से ऊपर होती है।
-
लोकतांत्रिक भागीदारी:नागरिक न केवल कानूनों का पालन करते हैं बल्कि स्वयं उन्हें बनाते हैं।
“Man is free only when he obeys the law he has prescribed for himself.”
-
प्रजा और शासक का एकीकरण:रूसो के राज्य में शासक और प्रजा अलग नहीं होते; जनता स्वयं ही राज्य होती है।
रूसो बनाम होब्स व लॉक
विचार | होब्स | लॉक | रूसो |
---|---|---|---|
प्रकृति में मनुष्य | स्वार्थी और क्रूर | तर्कशील और स्वतंत्र | शांतिप्रिय और नैतिक |
सामाजिक अनुबंध | सुरक्षा के लिए सत्ता को सौंपना | स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सरकार | सार्वजनिक इच्छा के अधीन शासन |
स्वतंत्रता की परिभाषा | संप्रभु की आज्ञा का पालन | संपत्ति और जीवन की सुरक्षा | स्वयं द्वारा बनाए कानूनों के अधीन होना |
रूसो की शिक्षा-दृष्टि (Émile)
रूसो का मानना था कि मनुष्य के भीतर नैतिकता और स्वतंत्र सोच प्राकृतिक होती है, जिसे एक मुक्त वातावरण में विकसित करना चाहिए।
मुख्य बिंदु:
-
बालक को प्रकृति के अनुरूप शिक्षित किया जाना चाहिए
-
बड़ों की तरह न पढ़ाया जाए, बल्कि उसे अनुभव करने दिया जाए
-
नैतिक शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है
रूसो की यह पुस्तक यूरोप में आधुनिक बाल शिक्षा का आधार बनी और Maria Montessori जैसे शिक्षाविदों को प्रेरणा मिली।
धर्म और राजनीति
रूसो ने चर्च की निरंकुशता का विरोध करते हुए “सिविल धर्म” (Civil Religion) की बात की:
-
धर्म का उद्देश्य नागरिकों में नैतिकता और देशभक्ति को बढ़ावा देना होना चाहिए
-
चर्च को राज्य पर प्रभुत्व नहीं करना चाहिए
-
सच्चा धर्म वही है जो लोगों को मिलकर जीना सिखाए, न कि विभाजन करना
रूसो की आलोचना
रूसो की विचारधारा में कुछ अंतर्विरोध भी माने गए:
- सार्वजनिक इच्छा बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता: यदि कोई व्यक्ति General Will का विरोध करे तो उसे “स्वतंत्र होने के लिए मजबूर” किया जाएगा — यह विचार अधिनायकवाद के दरवाजे खोल सकता है।
- आदर्शवादी दृष्टिकोण: रूसो ने मनुष्य की प्रकृति को अत्यधिक आदर्शीकृत किया, जिसे व्यवहार में लागू करना कठिन है।
- महिलाओं की भूमिका: Émile में रूसो ने महिलाओं को केवल मातृत्व और पुरुषों की सेवा तक सीमित कर दिया, जिससे नारीवादियों ने उनकी आलोचना की।
आधुनिक लोकतंत्र पर प्रभाव
रूसो के विचारों का प्रभाव अनेक क्रांतियों और विचारधाराओं में स्पष्ट रूप से दिखता है:
-
फ्रांसीसी क्रांति (1789):“स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व” का नारा रूसो की The Social Contract से प्रेरित था।
-
लोकतंत्र की अवधारणा:प्रतिनिधिक शासन, जनहित, और समानता की अवधारणा रूसो के दर्शन से जन्मी।
-
नागरिक शिक्षा:आज के समय में नैतिक और लोकतांत्रिक नागरिक तैयार करने की प्रक्रिया भी रूसो के Émile से प्रभावित है।
-
महात्मा गांधी व टॉल्सटॉय पर प्रभाव:नैतिक स्वराज और सादगी का विचार गांधी जी में भी रूसो की झलक देता है।
निष्कर्ष
रूसो ने यह सिद्ध किया कि केवल कानून और सत्ता से समाज नहीं चलता; ज़रूरत है — “लोक इच्छा” की। उन्होंने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जिसमें स्वतंत्रता केवल विकल्प चुनने की आज़ादी नहीं, बल्कि दूसरों के साथ सामूहिक भलाई की दिशा में सोचने की प्रक्रिया हो।
रूसो ने आधुनिक युग को यह सिखाया कि मनुष्य केवल एक उपभोक्ता नहीं, बल्कि नैतिक निर्णय लेने वाला प्राणी है — और यही भावना किसी भी लोकतंत्र की आत्मा होनी चाहिए।