
“The history of all hitherto existing society is the history of class struggles.”— Karl Marx
मार्क्स का दर्शन केवल विचार नहीं था — वह क्रिया का आह्वान था। उन्होंने दुनिया को समझने की बजाय बदलने की बात की। उनकी विचारधारा ने दुनिया के एक-तिहाई हिस्से को बदल दिया, और आज भी बहस, क्रांति, और आंदोलनों की प्रेरणा है।
जीवन परिचय
विवरण | जानकारी |
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जन्म | 5 मई 1818, ट्रियर, जर्मनी |
मृत्यु | 14 मार्च 1883, लंदन |
शिक्षा | यूनिवर्सिटी ऑफ बॉन, यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन |
सहयोगी | फ्रेडरिक एंगेल्स |
प्रमुख रचनाएँ |
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Communist Manifesto (1848)
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Das Kapital (1867)
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Economic and Philosophic Manuscripts (1844)
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German Ideology (1846)
मार्क्स के दर्शन के 7 प्रमुख सिद्धांत
1. ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism)
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इतिहास को समझने का आधार आर्थिक शक्तियाँ और उत्पादन के साधन हैं, न कि धर्म या नैतिकता।
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समाज की संरचना (superstructure) का मूल आधार आर्थिक ढांचा (base) होता है।
ऐतिहासिक चरण:
चरण | प्रमुख वर्ग संघर्ष |
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आदिम साम्यवाद | कोई वर्ग नहीं |
दास समाज | मालिक vs दास |
सामंती समाज | ज़मींदार vs किसान |
पूंजीवादी समाज | पूंजीपति (Bourgeoisie) vs मज़दूर (Proletariat) |
समाजवादी समाज | वर्गविहीन राज्य की ओर संक्रमण |
2. वर्ग संघर्ष (Class Struggle)
मार्क्स के अनुसार, सभी सामाजिक परिवर्तन का मूल है —
“Class struggle between those who own the means of production and those who do not.”
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पूंजीपति वर्ग (Bourgeoisie) — संसाधनों का मालिक
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सर्वहारा वर्ग (Proletariat) — श्रम करता है लेकिन शोषित होता है
3. श्रम का मूल्य और शोषण (Labour Theory of Value & Exploitation)
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श्रमिक जितना मूल्य पैदा करता है, उसका पूरा हिस्सा उसे नहीं मिलता।
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बचा हुआ मूल्य (Surplus Value) — जो श्रमिक का उत्पादन है — उसे पूंजीपति लाभ के रूप में लेता है।
“Profit is theft.”
4. अलगाव (Alienation)
पूंजीवाद में श्रमिक:
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काम से अलग होता है
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अपने उत्पाद से अलग होता है
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अन्य मनुष्यों से अलग होता है
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अपने आप से अलग हो जाता है
यह एक मानसिक और सामाजिक अलगाव है जिसे केवल क्रांति से ही मिटाया जा सकता है।
5. क्रांति और समाजवाद की ओर संक्रमण
“Workers of the world, unite! You have nothing to lose but your chains.”
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मजदूर वर्ग का संगठित संघर्ष ही पूंजीवाद को समाप्त कर सकता है।
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समाजवाद में:
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निजी संपत्ति समाप्त
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उत्पादन साधनों का सामाजिक स्वामित्व
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समानता पर आधारित राज्य
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6. राज्य का स्वरूप (State as a Class Tool)
मार्क्स के अनुसार:
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राज्य तटस्थ नहीं होता।
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यह वर्गीय शोषण का उपकरण होता है —
“State is the executive committee of the bourgeoisie.”
समाजवाद की दिशा में राज्य को श्रमिक वर्ग के हित में रूपांतरित करना होगा, और अंततः एक वर्गविहीन, राज्यविहीन समाज उत्पन्न होगा।
7. धर्म पर दृष्टिकोण
“Religion is the opium of the people.”
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धर्म को उन्होंने एक भ्रम माना जो पीड़ितों को सांत्वना देता है लेकिन समाधान नहीं।
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यह शोषण को न्यायोचित ठहराने का उपकरण बन जाता है।
मार्क्सवाद का प्रभाव
क्षेत्र | प्रभाव |
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राजनीति | रूस की बोल्शेविक क्रांति (1917), चीन, क्यूबा |
अर्थव्यवस्था | साम्यवाद, राज्य-नियंत्रित योजनाएं |
शिक्षा | फ्रैंकफर्ट स्कूल, नारीवाद, उत्तर-आधुनिक आलोचना |
भारत में प्रभाव | चारु मजूमदार, केरल कम्युनिज्म, दलित-आंदोलन में वर्ग विमर्श |
आलोचना
आलोचना | उत्तर |
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आर्थिक निर्धारणवाद | केवल अर्थ को प्राथमिक मानना अधूरा विश्लेषण है |
वर्गों की सख्त परिभाषा नहीं | आधुनिक समाज में वर्ग सीमाएँ धुंधली हैं |
हिंसक क्रांति का समर्थन | लोकतांत्रिक सुधारों की संभावना को नकारना |
राज्य का अंत असंभव | व्यावहारिक नहीं प्रतीत होता |
निष्कर्ष
“Philosophers have only interpreted the world in various ways; the point is to change it.”— Karl Marx