
अगर जॉन लॉक ने स्वतंत्रता की नींव रखी और रूसो ने उसमें जन-इच्छा का रंग भरा, तो जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता को आधुनिक व्यक्ति की आत्मा बना दिया।
वह कहते हैं —
“The worth of a state in the long run is the worth of the individuals composing it.”
मिल के दर्शन की नींव स्वतंत्रता, तर्क और उपयोगितावाद (Utilitarianism) पर टिकी थी, जिसमें व्यक्ति की गरिमा सर्वोपरि है।
जीवन परिचय
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जन्म: 20 मई 1806, लंदन
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पिता: जेम्स मिल (Utilitarian दार्शनिक और अर्थशास्त्री)
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मृत्यु: 8 मई 1873
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शिक्षा: बाल्यकाल से ही गहन शिक्षा, पिता द्वारा प्रशिक्षित
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प्रमुख रचनाएँ:
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On Liberty (1859)
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Utilitarianism (1863)
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Considerations on Representative Government (1861)
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The Subjection of Women (1869)
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मिल का दार्शनिक ढांचा
1. उपयोगितावाद (Utilitarianism)
सिद्धांत:
“The greatest happiness of the greatest number.”
यह सिद्धांत पहले जेरेमी बेंथम ने प्रस्तुत किया था, पर मिल ने इसे संवेदनशीलता और गुणात्मक दृष्टिकोण के साथ विकसित किया।
बेंथम बनाम मिल:
बिंदु | जेरेमी बेंथम | जॉन स्टुअर्ट मिल |
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सुख की प्रकृति | मात्रात्मक (Quantitative) | गुणात्मक (Qualitative) |
उदाहरण | 100 मूर्खों की खुशी = 1 बुद्धिमान की | बुद्धिमान का सुख श्रेष्ठ |
परीक्षण | Pleasure minus pain | Higher vs. lower pleasures |
🟢 मिल ने कहा —
“Better to be a human being dissatisfied than a pig satisfied.”
2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सिद्धांत (Principle of Liberty)
मुख्य ग्रंथ: On Liberty (1859)
मिल का "Harm Principle":
“The only freedom which deserves the name is that of pursuing our own good in our own way… so long as we do not deprive others of theirs.”
📌 इसका अर्थ:
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राज्य को केवल तभी हस्तक्षेप करना चाहिए जब किसी के कार्य दूसरों को नुकसान पहुँचा रहे हों।
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व्यक्ति को अपने विचार, अभिव्यक्ति, व्यवहार और जीवनशैली चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए।
चार स्वतंत्रताएँ:
स्वतंत्रता | विवरण |
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विचार और अभिव्यक्ति | चाहे वह अलोकप्रिय क्यों न हो |
जीवन का तरीका | व्यक्तिगत निर्णय पर आधारित |
संघ बनाने की स्वतंत्रता | अन्य लोगों के साथ मिलकर कार्य करना |
स्व-पोषण का अधिकार | जब तक किसी को हानि न हो |
3. लोकतंत्र और प्रतिनिधि शासन
मिल ने Considerations on Representative Government में लोकतंत्र का पक्ष लिया।
प्रमुख बिंदु:
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शिक्षा के बिना लोकतंत्र भीड़तंत्र बन सकता है।
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उन्होंने बहुसंख्यक अत्याचार (Tyranny of Majority) से बचने की चेतावनी दी।
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न्याय, विवेक और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण आवश्यक है।
4. नारी स्वतंत्रता और लैंगिक समानता
मिल ने 1869 में The Subjection of Women में कहा —
“The legal subordination of one sex to the other is wrong in itself.”
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वह पहले दार्शनिकों में थे जिन्होंने नारी शिक्षा, मताधिकार, और कानूनी अधिकारों की जोरदार वकालत की।
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उनका मानना था कि नारी को गुलाम बनाए रखने से समाज की बुद्धि और नैतिकता दोनों कमजोर होती है।
मिल का राज्य दर्शन
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राज्य का कार्य है न्यूनतम हस्तक्षेप करना, जब तक व्यक्ति का कार्य दूसरों को नुकसान न पहुँचा रहा हो।
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वह "नकारात्मक स्वतंत्रता" (Negative Liberty) के समर्थक थे — जिसमें व्यक्ति को बंधनों से मुक्त रहने का अधिकार है।
राज्य के तीन कार्य:
1. आंतरिक और बाहरी सुरक्षा2. कानून व्यवस्था
3. शिक्षा और नागरिक चेतना का विकास
तुलनात्मक विश्लेषण
विचारक | स्वतंत्रता की दृष्टि | राज्य की भूमिका |
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होब्स | सुरक्षा हेतु अधिनता | सर्वसत्तावादी नियंत्रण |
रूसो | सामान्य इच्छा का पालन | प्रत्यक्ष लोकतंत्र |
हेगेल | नैतिकता और तर्क के अधीन स्वतंत्रता | विवेकशील राज्य |
मिल | दूसरों को हानि न पहुँचाए ऐसी स्वतंत्रता | न्यूनतम हस्तक्षेप, विवेकपूर्ण राज्य |
आलोचना
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अत्यधिक बल
कुछ आलोचकों के अनुसार, मिल का दृष्टिकोण अति-व्यक्तिवादी है जो सामाजिक उत्तरदायित्व को कमजोर करता है।
- सुख का मापदंड अस्पष्ट
उच्च और निम्न सुख की तुलना वस्तुनिष्ठ नहीं मानी जाती।
- शुद्ध उपयोगितावाद नहीं
उन्होंने सिद्धांत को नैतिक आदर्शों से जोड़ा — जो बेंथम की मूल उपयोगितावादी दृष्टिकोण से भिन्न है।
मिल का प्रभाव
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भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की अवधारणा, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पर मिल का स्पष्ट प्रभाव है।
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आधुनिक उदारवाद (Modern Liberalism) की नींव उन्होंने रखी।
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मानवाधिकार, नारी अधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता, और शिक्षा में उनकी सोच आज भी प्रासंगिक है।
निष्कर्ष
“A man who has nothing which he is willing to fight for, nothing which he cares more about than he does about his personal safety, is a miserable creature.”