
“सर्वोच्च भलाई, अधिकतम संख्या के लिए अधिकतम सुख” —
इसी विचार के साथ जेरेमी बेंथम ने राजनीति और कानून की दुनिया में एक क्रांतिकारी विचारधारा प्रस्तुत की: उपयोगितावाद।
“Nature has placed mankind under the governance of two sovereign masters, pain and pleasure.”— Jeremy Bentham
बेंथम ने राजनीति को संवेदनशील तर्क और अनुभव की कसौटी पर परखा, न कि परंपरा या ईश्वर की सत्ता पर।
जीवन परिचय
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जन्म: 15 फरवरी 1748, लंदन
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मृत्यु: 6 जून 1832
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पेशा: दार्शनिक, विधिवेत्ता, समाज-सुधारक
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शिक्षा: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय
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प्रमुख रचनाएँ:
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An Introduction to the Principles of Morals and Legislation (1789)
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The Rationale of Punishment
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Constitutional Code
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बेंथम का दार्शनिक आधार: उपयोगितावाद (Utilitarianism)
🔹 सिद्धांत:
“The greatest happiness of the greatest number.”
यह विचार इस पर आधारित है कि सभी मनुष्य सुख की खोज और दुख से बचाव की दिशा में ही कार्य करते हैं। नीति, कानून, शासन, और नैतिकता — सभी का मूल्यांकन केवल इन दो तत्वों से किया जाना चाहिए:
मुख्य अवधारणाएँ
1. सुख और दुख की गणना (Hedonic Calculus)
सुख मापने के 7 मापदंड (Hedonic Calculus):
मापदंड | अर्थ |
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Intensity | सुख की तीव्रता |
Duration | कितने समय तक सुख रहेगा |
Certainty | सुख की संभावना कितनी है |
Propinquity | कितना त्वरित अनुभव होगा |
Fecundity | क्या उससे और सुख जन्मेगा |
Purity | क्या उसमें दुख की मिलावट नहीं |
Extent | कितने लोग उससे लाभान्वित होंगे |
2. कानून का उद्देश्य: सुख
बेंथम के अनुसार, कानून का मूल कार्य है —
“To promote the greatest happiness of the greatest number.”
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कानून को केवल इस आधार पर परखा जाना चाहिए कि वह लोगों के सुख में कितना योगदान करता है।
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उन्होंने पारंपरिक कानूनों को "नैतिकता रहित" कहा और कानूनी सुधारों की ज़रूरत पर बल दिया।
3. सजा का उद्देश्य (Theory of Punishment)
बेंथम ने The Rationale of Punishment में लिखा:
“All punishment is evil. It ought only to be admitted in so far as it promises to exclude some greater evil.”
सजा के उद्देश्य:
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निवारण (Deterrence)
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सुधार (Reform)
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सुरक्षा (Protection)
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प्रतिशोध नहीं, बल्कि भविष्य के सुख हेतु रोकथाम प्रमुख है।
बेंथम की राजनीति
1. सत्ता और राज्य का मूल्यांकन
बेंथम के अनुसार:
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राज्य या सरकार का कोई भी कार्य तभी न्यायोचित है, जब वह अधिकांश जनता के सुख में वृद्धि करे।
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उन्होंने राजा के ईश्वर प्रदत्त अधिकारों का विरोध किया।
“The power of the monarch must be subordinate to the welfare of the people.”
2. लोकतंत्र की वकालत
बेंथम का दृष्टिकोण था:
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प्रत्येक वयस्क को मताधिकार मिलना चाहिए (Universal Suffrage)
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गुप्त मतदान (Secret Ballot) अनिवार्य है
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संसद को जनता के कल्याण के प्रति जवाबदेह होना चाहिए
3. विधायिका पर बल
बेंथम ने कहा कि:
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कानून निर्माण सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।
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उन्होंने Constitutional Code में विधायिका की पारदर्शिता, नियंत्रण, और प्रभावशीलता की विस्तृत व्यवस्था दी।
अन्य विचार
1. नारीवाद और समानता
हालांकि बेंथम के कार्यों में लैंगिक समानता पर खुलकर चर्चा नहीं हुई, परंतु वह सभी मनुष्यों की समानता के समर्थक थे।
2. धर्म और नैतिकता
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बेंथम धर्म द्वारा संचालित नैतिकता के विरोधी थे।
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उन्होंने कहा —
“Priestcraft and kingcraft are enemies of reform.”
आलोचना
आलोचना | उत्तर |
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मात्रात्मक दृष्टिकोण: क्या सुख को संख्याओं में मापा जा सकता है? | जॉन स्टुअर्ट मिल ने इसे "गुणात्मक उपयोगितावाद" से सुधारने का प्रयास किया |
अल्पसंख्यकों की उपेक्षा: यदि बहुसंख्यक का सुख बढ़े और अल्पसंख्यक पीड़ित हो तो? | आधुनिक लोकतंत्र में इस आलोचना को गंभीरता से लिया गया है |
यांत्रिक और गणनात्मक नैतिकता | इंसान के भावनात्मक और नैतिक पहलू को नजरअंदाज़ किया गया |
बेंथम का प्रभाव
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ब्रिटिश कानूनी सुधारों पर गहरा प्रभाव
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लोकतांत्रिक संस्थानों की पारदर्शिता, मताधिकार, और सजा प्रणाली के आधुनिक विचारों की नींव रखी
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भारतीय दंड संहिता (IPC) के निर्माण पर अप्रत्यक्ष प्रभाव
निष्कर्ष
“Create all the happiness you are able to create; remove all the misery you are able to remove.”