क्या महर्षि भारद्वाज ने 'विमान शास्त्र' में आधुनिक हवाई जहाज़ों का विवरण दिया था?



पौराणिक विचारधारा में अक्सर यह कहा जाता है कि:

“महर्षि भारद्वाज ने 'विमान शास्त्र' में हवाई जहाज़ों की तकनीक 7000 साल पहले लिख दी थी। राइट ब्रदर्स से बहुत पहले भारत में विमान उड़ रहे थे।”

2015 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस में भी यह बात मंच से कही गई थी।
पर क्या सच में यह ग्रंथ वैज्ञानिक है या फिर 19वीं सदी का एक साहित्यिक प्रहसन जिसे राष्ट्रवादी प्रचार ने 'वैदिक' बना दिया?


क्या है ‘विमान शास्त्र’?

  • 'वायमानिक शास्त्र' या 'विमान शास्त्र' एक ग्रंथ है जो महर्षि भारद्वाज को समर्पित है।

  • इसमें 5000 से अधिक श्लोक हैं, और दावा किया जाता है कि इसमें विमान निर्माण, उड़ान, ईंधन, रडार तकनीक आदि का वर्णन है।

📌 लेकिन:

  • यह ग्रंथ 1904 में पहली बार सामने आया जब एक व्यक्ति शुभराय शास्त्री ने इसे 'खोजा'।

  • उन्होंने कहा कि यह पुराना ग्रंथ है जो उन्हें 'योगिक ध्यान' में प्राप्त हुआ!

➡️ न तो इसका कोई प्राचीन पांडुलिपि प्रमाण है, न ही यह किसी वेद, उपनिषद, पुराण में मिलता है।


ग्रंथ की ऐतिहासिकता पर सवाल

1980 में एक जाँच समिति बनाई गई थी जिसमें शामिल थे:

  • H. S. Mukunda (aeronautical scientist, IISc)

  • S. M. Deshpande

  • H. R. Nagendra

उन्होंने इस ग्रंथ पर 6 महीने शोध किया और निष्कर्ष निकाला:

“यह ग्रंथ गैर-वैज्ञानिक, काल्पनिक और अवैज्ञानिक है। इसमें बताए गए विमान उड़ ही नहीं सकते।”

📌 ग्रंथ में जो विमान डिजाइन हैं वे एरोडायनामिक्स के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं:

  • विमान आकार में असंतुलित हैं।

  • विमान उड़ान के लिए आवश्यक बलों की गणना नहीं की गई।

  • सामग्री और ईंधन के बारे में बातें अवैज्ञानिक और हास्यास्पद हैं।


ग्रंथ में बताए गए विमान

नाम:

  • शकुना विमान

  • सुंदर विमान

  • ऋतु विमान

  • त्रिपुरा विमान

➡️ इनमें से कुछ हवा में अदृश्य हो सकते हैं, कुछ पानी में जा सकते हैं, कुछ का ईंधन 'कछुए के मूत्र' से चलता है।
➡️ कहीं लिखा है कि विमान को हवा में 'पंचतत्त्व' से संतुलित किया जाता है।

📌 यह विज्ञान नहीं, बल्कि कल्पना और प्रतीकवाद है।


क्या यह वाकई महर्षि भारद्वाज का ग्रंथ है?

  • ऋग्वेद और अथर्ववेद में महर्षि भारद्वाज का उल्लेख है, पर उन्होंने कभी ‘विमान’ शब्द का प्रयोग नहीं किया।

  • 'वायमानिक शास्त्र' का कोई प्रमाणिक पांडुलिपि, पुरातात्विक आधार, या किसी भी वैदिक ग्रंथ में संदर्भ नहीं है।

📌 यानी यह ग्रंथ 19वीं-20वीं सदी की कल्पना है, जिसे राष्ट्रवादी अभियान ने वेदों से जोड़ने की कोशिश की


विज्ञान में उठी शर्मिंदगी

  • 2015 के विज्ञान कांग्रेस (Mumbai) में Captain Anand Bodas और Ameya Jadhav ने मंच से दावा किया:

“भारद्वाज ने उड़ने वाले विमानों की तकनीक बहुत पहले दी थी। उनके विमान अंतरिक्ष यात्रा भी कर सकते थे।”

  • इस पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने भारत की आलोचना की कि विज्ञान मंच को पौराणिक विचारों के प्रचार का साधन बनाया गया।

➡️ यह हमारे देश की वैज्ञानिक प्रतिष्ठा के लिए नुकसानदायक है।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या कहता है?

  • Aerodynamics, Propulsion, Thrust-to-weight ratio, Drag, Lift — इन सबकी गणना के बिना कोई भी विमान नहीं बन सकता।

  • 'वायमानिक शास्त्र' में इनका कोई उल्लेख नहीं।

  • इस ग्रंथ की भाषा में हिंदी, संस्कृत और ब्रज का मिश्रण है — जो प्राचीन नहीं, बल्कि आधुनिक भाषिक प्रयोग का संकेत है।


यह मिथक क्यों फैला?

  • औपनिवेशिक काल में भारत की खोई हुई प्रतिष्ठा को पाने के लिए अति-गौरवपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया गया।

  • 'हम पहले से सब जानते थे' की प्रवृत्ति ने हमें मिथकों को विज्ञान बताने पर मजबूर किया।

  • परंतु इससे वैज्ञानिक सोच नहीं, बल्कि आत्म-प्रवंचना (self-deception) बढ़ी।


निष्कर्ष

  • 'विमान शास्त्र' एक आधुनिक युग की रचना है, न कि वैदिक भारत की।

  • इसमें वैज्ञानिकता का अभाव है — और इसे महर्षि भारद्वाज से जोड़ना ऐतिहासिक और शास्त्रीय दृष्टि से ग़लत है।

  • अगर हम वैज्ञानिक राष्ट्र बनना चाहते हैं, तो हमें आस्था और विज्ञान में अंतर करना सीखना होगा।

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