
“पश्चिम से पहले हमारे पास विमान थे। रामायण में रावण के पास पुष्पक विमान था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था — वह प्रमाण है कि भारत में हवाई तकनीक थी।”
🚩 यह दावा तब और मजबूत किया गया जब 2015 में मुंबई के एक विज्ञान सम्मेलन में एक शोधकर्ता ने दावा किया कि महर्षि भारद्वाज के ग्रंथों में विमान शास्त्र है और भारत में पहले से अंतरिक्ष यान थे।
लेकिन क्या यह सब इतिहास है, या सिर्फ कल्पना?
रामायण में पुष्पक विमान की कथा
वाल्मीकि रामायण (युद्ध कांड) के अनुसार:
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रावण पुष्पक विमान से सीता का हरण कर लंका लाया।
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युद्ध के बाद राम उसी विमान से सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे।
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विमान “मन की इच्छा से चलने वाला”, “तेज गति से उड़ने वाला” और “शब्द से संचालित” था।
➡️ वर्णन पूरी तरह अलौकिक और चमत्कारी है, न कि मैकेनिकल या वैज्ञानिक।
क्या यह असली विमान था?
पुष्पक विमान के दावों की तुलना आधुनिक हवाई तकनीक से करें:
तत्व | रामायण वर्णन | आधुनिक विमान |
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नियंत्रण | विचार या मंत्र से | पायलट/सॉफ्टवेयर |
शक्ति स्रोत | अज्ञात | जेट इंजन, फ्यूल |
गति | बिना बाधा कहीं भी | गति सीमित, वातावरण पर निर्भर |
डिज़ाइन | विस्तृत नहीं | वायुगतिकीय, पंख व नोज़ |
कार्य | तुरंत उड़ान, बिना ईंधन | टेकऑफ़-लैंडिंग रनवे की ज़रूरत |
📌 रामायण में किसी तरह की वायुगतिकी, धातुशास्त्र, इंजन डिजाइन की चर्चा नहीं होती।
"वैमानिक शास्त्र" — क्या यह वैज्ञानिक ग्रंथ है?
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महर्षि भारद्वाज के नाम से वैमानिक शास्त्र नामक ग्रंथ 1900 के दशक की शुरुआत में सामने आया।
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इसे सुभारया शास्त्री ने “योगबल से” प्रकट किया था (i.e., psychic dictation)।
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1974 में IISc बंगलुरु के वैज्ञानिकों ने इस पर शोध किया और कहा:
“यह ग्रंथ तकनीकी रूप से बहुत कमजोर है, इसमें कोई वैमानिक सिद्धांत या गणितीय औचित्य नहीं है।”
➡️ यह प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथ नहीं, बल्कि आधुनिक कल्पना है।
क्या प्राचीन भारत में उड़ान तकनीक थी?
नहीं।
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भारत में खगोल, गणित और धातु विज्ञान में प्रगति थी — लेकिन उड़ान तकनीक का कोई ऐतिहासिक, पुरातात्विक या वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
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न कोई विमान निर्माण स्थल,
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न कोई उड़ान परीक्षण स्थल,
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न कोई ईंधन भंडारण या इंजन तकनीक।
📌 पुष्पक एक मिथकीय कल्पना है, उड़ान विज्ञान का उदाहरण नहीं।
इस मिथक को क्यों फैलाया गया?
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गुलामी और उपनिवेशवाद के बाद राष्ट्रवादी सोच यह सिद्ध करना चाहती थी कि:
“हमारी सभ्यता सबसे श्रेष्ठ थी — पश्चिम से पहले ही हम चाँद-तारों पर पहुँच चुके थे।”
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यह भावनात्मक गौरव उचित है, पर विज्ञान प्रमाण मांगता है, श्रद्धा नहीं।
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कल्पनाओं को विज्ञान कहना — वैज्ञानिक सोच का मज़ाक बनाता है।
निष्कर्ष
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पुष्पक विमान मिथकीय कथा है — सुंदर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध, लेकिन वैज्ञानिक रूप से निराधार।
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इसका कोई इंजीनियरिंग विवरण, ऐतिहासिक साक्ष्य या वैज्ञानिक आधार नहीं।
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हमें गौरव करना चाहिए कि हमारे ग्रंथों में उड़ान की कल्पना थी — पर उसे वैज्ञानिक यंत्र कहना धोखा है।