शि‍क्षा का अधि‍कार है जरूरी

शिक्षा किसी भी व्यक्ति के जीवन की दिशा तय करने वाला एक सशक्त माध्यम होती है। यह समाज को जागरूक, संवेदनशील और उत्तरदायी बनाती है। लेकिन भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहाँ शिक्षा की पहुँच दशकों तक एक विशेष वर्ग तक सीमित रही, वहाँ हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दिलाना किसी क्रांति से कम नहीं।

संविधान और शिक्षा: पहले के प्रयास

भारत के संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को मूलभूत अधिकार बनाने की सोच बहुत पहले ही रखी थी। अनुच्छेद 45 में यह कहा गया था कि 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रयास राज्य करेगा। लेकिन यह एक नीति-निर्देशक तत्व था, बाध्यकारी नहीं।

1976 में शिक्षा को समवर्ती सूची में डाल दिया गया, जिससे केंद्र और राज्य दोनों इस क्षेत्र में कानून बना सकते थे। लेकिन तब भी 'शिक्षा का अधिकार' केवल कागजों में सीमित था।

सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक टिप्पणी

1993 में सुप्रीम कोर्ट ने 'उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य' मामले में यह ऐतिहासिक निर्णय दिया कि अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) में शिक्षा का अधिकार निहित है। इसने यह स्पष्ट किया कि बिना शिक्षा के जीवन की गरिमा की कल्पना अधूरी है।

यह निर्णय शिक्षा को केवल नीति निर्देशक सिद्धांतों तक सीमित रखने के बजाय, उसे न्यायोचित और बाध्यकारी अधिकार के रूप में मान्यता देने की दिशा में पहला बड़ा कदम था।

कानूनी यात्रा: एक बिल, अनेक पड़ाव

  • 2002 का 86वां संविधान संशोधन: इसने अनुच्छेद 21A जोड़ा, जिसके अनुसार “राज्य 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करेगा।” साथ ही, अनुच्छेद 51A (क) में यह जोड़ दिया गया कि प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य होगा कि वे अपने 6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा दिलवाएँ।

  • 2003-2005: 'राइट टू एजुकेशन' कानून के लिए प्रारंभिक प्रयास शुरू हुए। इसके पहले ड्राफ्ट को 2005 में तैयार किया गया।

  • 2008: विधेयक संसद में प्रस्तुत हुआ, जिससे भारत का शिक्षा इतिहास एक निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ा।

2009: शिक्षा का अधिकार बना हक़ीक़त

  • 20 जुलाई 2009: राज्यसभा में बिल पारित हुआ।

  • 4 अगस्त 2009: लोकसभा में भी बहुमत से पारित हुआ।

इस प्रकार, यह विधेयक कानून बन गया और 1 अप्रैल 2010 से पूरे देश में लागू हो गया। यह दिन भारतीय शिक्षा व्यवस्था के इतिहास में 'दूसरा स्वतंत्रता दिवस' जैसा माना गया।


कानून की प्रमुख विशेषताएँ

  • 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा।

  • निजी स्कूलों में 25% सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षित।
  • शिक्षकों की योग्यता और प्रशिक्षण का निर्धारण।
  • शारीरिक दंड या मानसिक उत्पीड़न पर पूर्ण प्रतिबंध।
  • बिना परीक्षा के प्रमोशन (No Detention Policy)।
  • विद्यालयों में मूलभूत ढाँचा (शौचालय, पेयजल, पुस्तकालय, खेल आदि) अनिवार्य।

राजनीतिक पहलु: श्रेय की राजनीति

इस क्रांतिकारी विधेयक के श्रेय का प्रश्न भी राजनीतिक बहस का विषय रहा।

  • भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने इस दिशा में प्रारंभिक प्रयास किए।

  • कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को इसे अंतिम रूप देने और लागू करने का श्रेय मिला।

15वीं लोकसभा में यूपीए की जीत ने मनमोहन सिंह सरकार को यह ऐतिहासिक अवसर दिया, जिससे वे भारत के शिक्षा इतिहास में एक निर्णायक मोड़ जोड़ सके।


चुनौतियाँ: क्या सिर्फ कानून काफी है?

  • अधोसंरचना की कमी – कई राज्यों में विद्यालयों की हालत खराब है।
  • शिक्षकों की भारी कमी – प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती एक बड़ी चुनौती बनी रही।
  • गुणवत्ता की गिरावट – केवल नामांकन बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आवश्यक है।

  • प्रवर्तन की समस्याएँ – बहुत से राज्य सरकारों ने कानून को शिथिल रूप में लागू किया।
  • शहरी-ग्रामीण विभाजन – महानगरों में शिक्षा सुविधाएँ बेहतर, लेकिन ग्रामीण भारत में अब भी संकट बना हुआ है।

वित्तीय पक्ष

  • प्रति वर्ष ₹12,000 करोड़ का अतिरिक्त खर्च केंद्र सरकार पर आता है।

  • अनुमानित ₹1.5 लाख करोड़ रुपये अधोसंरचना और व्यवस्था के सुधार हेतु वर्षों में खर्च हुए।

परंतु यह निवेश भारत के सामाजिक पूँजी निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है।


अंतरराष्ट्रीय संदर्भ

  • अमेरिका, फ्रांस, जापान जैसे देशों में शिक्षा वर्षों से मौलिक अधिकार रही है।

  • भारत अब उन गिने-चुने देशों की सूची में है जहाँ संवैधानिक रूप से शिक्षा सबका अधिकार है, न कि कोई रियायत।


निष्कर्ष: शिक्षा के अधिकार से समृद्ध राष्ट्र की ओर

'राइट टू एजुकेशन' कानून सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि एक सपने का साकार रूप है—जिसमें हर बच्चे के हाथ में किताब हो, हर आँख में उम्मीद हो और हर कदम एक बेहतर भविष्य की ओर उठे।

यदि इस कानून को ईमानदारी और प्रतिबद्धता से लागू किया गया, तो यह कानून भारत के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को जड़ से बदल सकता है। यह न केवल गरीबी, बेरोजगारी और भेदभाव से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र को सशक्त, समान और समावेशी भी बनाएगा।


References (संदर्भ):

1. भारत का संविधान (अनुच्छेद 21A, 45, 51A)
2. उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1993) – सुप्रीम कोर्ट निर्णय
3. HRD Ministry Reports (2003-2012)
4. Right to Education Act, 2009 - भारत सरकार
5. National Education Policy (2020)

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