दावा क्या है?
दावा:
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महाभारत में संजय धृतराष्ट्र को युद्ध का “लाइव” विवरण दे रहा था।
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वह सब कुछ देख रहा था जो वहाँ घट रहा था — बिना वहाँ मौजूद रहे।
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यह किसी live CCTV, satellite transmission या internet feed जैसा ही तो है।
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इसी तरह पुष्पक विमान, ब्रह्मास्त्र आदि को मिसाइल टेक्नोलॉजी, और अर्जुन का दिव्यास्त्र छोड़ना "remote control drone" जैसा कहा जाता है।
महाभारत में संजय की दृष्टि का वर्णन
महाभारत (भीष्म पर्व, अध्याय 2-3):
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व्यास मुनि ने संजय को “दिव्य दृष्टि” दी — जिससे वह कहीं भी घट रही घटनाओं को देख और सुन सकता था।
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इस दृष्टि से वह युद्ध देखता और आँखों से अंधे राजा धृतराष्ट्र को विवरण सुनाता है।
📌 ये “दिव्य दृष्टि” शब्द अलौकिक दृष्टि या मानसिक शक्ति का संकेत है — न कि कोई तकनीकी यंत्र।
क्या यह इंटरनेट या सैटेलाइट था?
नहीं, निम्नलिखित कारणों से:
i. इंटरनेट और सैटेलाइट क्या होते हैं?
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इंटरनेट = डेटा के डिजिटल संचार का एक ग्लोबल नेटवर्क (TCP/IP, routers, fiber optics, satellites आदि से संचालित)
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सैटेलाइट = पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कृत्रिम यंत्र जो सिग्नल प्रसारित करता है।
इनके लिए चाहिए:
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बिजली
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कंप्यूटिंग सिस्टम
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संचार नेटवर्क
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ट्रांसमीटर और रिसीवर डिवाइस
महाभारत में इनका कोई स्पष्ट भौतिक प्रमाण या विवरण नहीं मिलता।
ii. “दिव्य दृष्टि” विज्ञान नहीं, योगिक परंपरा है
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भारत की योग परंपरा में आध्यात्मिक साक्षात्कार की बात होती है।
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जैसे त्रिकालदर्शिता, अंतर्दृष्टि, ध्यान की गहन अवस्था।
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इसे आध्यात्मिक अवस्था कहा गया है — न कि तकनीकी संचार प्रणाली।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
🔬 क्या ब्रेन रिमोट सेंसिंग संभव है?
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नहीं। मानव मस्तिष्क अभी तक कोई संदेश बिना माध्यम के दूसरी जगह नहीं भेज सकता।
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“टेलेपैथी” पर रिसर्च चल रही है, लेकिन ये अभी केवल सैद्धांतिक और प्रयोगात्मक है।
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किसी व्यक्ति के दिमाग में दूर बैठे लोगों की तस्वीरें लाइव आ जाएं — ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं।
राष्ट्रवादी कल्पनाओं की जड़ें कहाँ हैं?
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ब्रिटिश उपनिवेश काल में जब हमें “सभ्यता से पिछड़ा” कहा गया, तब एक प्रतिक्रिया स्वरूप “हम पहले से सब जानते थे” वाली मानसिकता बनी।
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यह राष्ट्रीय हीनभावना के जवाब में बना गौरव भाव था।
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लेकिन गर्व तब ही सार्थक है जब वह सच पर आधारित हो — कल्पना पर नहीं।
इससे क्या नुकसान होता है?
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विज्ञान के छात्रों में भ्रांति पैदा होती है।वे सोचते हैं कि शोध करने की ज़रूरत ही नहीं — सब तो पहले से हो चुका है।
अंधश्रद्धा को बढ़ावा मिलता है, जबकि वैज्ञानिक सोच घटती है।
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अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की गंभीर वैज्ञानिक छवि कमजोर होती है।
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स्कूलों में अध्यापक और किताबें अगर पौराणिक कथाओं को विज्ञान बताने लगें, तो जिज्ञासा की हत्या हो जाती है।
संविधान और वैज्ञानिक सोच
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A(h) साफ़ कहता है:
“हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और ज्ञानार्जन की भावना को विकसित करे।”
👉 यह तभी संभव है जब हम मिथकों को विज्ञान कहने से रुकें, और पौराणिक कथाओं को उनकी सांस्कृतिक गरिमा में समझें।
निष्कर्ष: विज्ञान का अपमान मत बनाइए
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महाभारत की दिव्य दृष्टि एक अलौकिक कथा है, न कि इंटरनेट, सैटेलाइट या ड्रोन तकनीक का प्रमाण।
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संजय का विवरण योग परंपरा में एक आध्यात्मिक “कथानक अलंकरण” है — टेक्नोलॉजिकल सिस्टम नहीं।
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भारत का प्राचीन विज्ञान गौरवपूर्ण है — लेकिन उसका सम्मान झूठ बोलकर नहीं, बल्कि सत्य से जोड़कर करें।