दावा किया जाता हैं:
“कौरवों का जन्म टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक से हुआ था। महाभारत में वर्णन है कि 100 भ्रूणों को घड़ों में रखा गया था और वहीं से उनका जन्म हुआ।”
महाभारत में क्या लिखा है?
महाभारत, आदिपर्व के अनुसार:
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गांधारी ने व्रत लिया था कि वह धृतराष्ट्र की संतान से पहले किसी को जन्म नहीं देगी। पर ऐसा ना हुआ।
महाभारत, आदि पर्व, अध्याय 115:
"साहं वर्षद्वयं गर्भं धारयामास भारत।"
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गांधारी ने गर्भ धारण किया, पर दो वर्ष तक प्रसव नहीं हुआ। वह इस बात से व्यथित हो गईं, विशेषकर तब जब उन्हें ज्ञात हुआ कि कुंती ने युधिष्ठिर को जन्म दे दिया है। तो वे दुखी और क्रोधित हो गईं और अपने पेट पर जोर से मुक्का मारा, और गर्भ को चोट पहुँचाया।
"स संक्रुद्धा ततः कुप्या व्रीडिता चाभवत् तदा।
पातयामास गर्भं सा भूमौ तं लोककण्टकम्॥" -
गर्भ से मांस का एक लोथड़ा निकला।
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महर्षि व्यास ने उसे 100 टुकड़ों में बाँटा और प्रत्येक को घी से भरे घड़ों में अलग-अलग रखा।
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दो वर्षों के बाद, उन घड़ों से 100 कौरव पुत्र पैदा हुए।
आधुनिक टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक क्या है?
तकनीक | विवरण |
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In Vitro Fertilization (IVF) | अंडाणु और शुक्राणु को लैब में निषेचित किया जाता है |
Embryo Transfer | भ्रूण को मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है |
Surrogacy | यदि मां भ्रूण नहीं पाल सकती, तो किसी और महिला के गर्भ में भ्रूण पाला जाता है |
➡️ महाभारत की कथा में इनमें से कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं दिखाई देती।
क्या महाभारत की कथा प्रतीकात्मक है?
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महाभारत में अनेक कथा-कहानियाँ काव्यात्मक, प्रतीकात्मक और चमत्कारी रूप में वर्णित हैं।
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100 कौरवों का एक ही समय में जन्म लेना राजनीतिक शक्ति और वैर भाव का प्रतीक भी हो सकता है।
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“घड़ों में भ्रूण” पालना, कविकल्पना और धार्मिक विश्वासों का हिस्सा था — विज्ञान नहीं।
➡️ यह चिकित्सा प्रक्रिया नहीं, बल्कि धार्मिक दृष्टांत है।
इसका प्रचार क्यों किया जाता है?
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राष्ट्रवादी मानसिकता यह जताना चाहती है कि:
“हमारे पूर्वज पहले से हर आधुनिक खोज कर चुके थे।”
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इसीलिए हर प्राचीन कथा को आधुनिक विज्ञान से जोड़ने की कोशिश होती है:
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विमान → भारद्वाज
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परमाणु → कणाद
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प्लास्टिक सर्जरी → गणेश
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टेस्ट ट्यूब बेबी → कौरव
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📌 परन्तु यह सांस्कृतिक गौरव से अधिक आत्म-प्रवंचना है।
वैज्ञानिक समुदाय की राय
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ICMR, AIIMS, और कई अन्य विशेषज्ञों ने स्पष्ट रूप से कहा है:
“ऐसे दावे भारतीय विज्ञान की छवि को धूमिल करते हैं।”
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महाभारत इतिहास नहीं, मिथक है — इसमें जो कुछ भी लिखा गया है वह श्रद्धा और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण है, परंतु वैज्ञानिक सत्य के रूप में नहीं लिया जा सकता।
कोई पुरातात्विक या चिकित्सा प्रमाण?
नहीं।
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आज तक न तो कोई वैदिक या महाभारतीय उपकरण मिला है जिससे यह सिद्ध हो सके।
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न कोई चिकित्सकीय ग्रंथ, न कोई विधि, न कोई प्रयोग — जो यह साबित कर सके कि प्राचीन भारत में IVF या भ्रूणविज्ञान था।
➡️ यह एक कविकल्पना है, जो आधुनिक शब्दों में विज्ञान का भ्रम पैदा करती है।
निष्कर्ष
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कौरवों का “घड़ों में जन्म” एक मिथकीय, प्रतीकात्मक कथा है — न कि IVF तकनीक का प्रमाण।
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यह कथा धर्म, साहित्य और संस्कृति का हिस्सा है — लेकिन इसे वैज्ञानिक सत्य कहना भारत के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अपमान है।
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आधुनिक विज्ञान और प्राचीन संस्कृति — दोनों को उनकी अपनी जगह पर सम्मान देना चाहिए, बिना जबरन मिलाने की कोशिश के।