संत थॉमस अक्विनास: धर्म और राजनीति का सामंजस्य


13वीं सदी के महान ईसाई विचारक संत थॉमस अक्विनास (1225–1274) को मध्ययुगीन दर्शन और राजनीति का सबसे प्रमुख समन्वयवादी कहा जाता है। उन्होंने ईसाई धर्म और अरस्तु के दर्शन को जोड़ा और ‘धर्म’ तथा ‘राजनीति’ के बीच एक सैद्धांतिक सेतु निर्मित किया।

उनका राजनीतिक दर्शन “दैवी नियम” (Divine Law), “प्राकृतिक नियम” (Natural Law), और “मानव नियम” (Human Law) पर आधारित था। वह चर्च और राज्य के संबंध, न्याय, कानून और सत्ता के नैतिक आधार पर गहन चिंतन करते हैं।


जीवन परिचय

  • जन्म: 1225 ई., रोकोसेका, इटली

  • मृत्यु: 1274 ई., फोसानोवा, इटली

  • संस्थान: डोमिनिकन ऑर्डर

  • प्रमुख रचना: Summa Theologica

अक्विनास को "Doctor Angelicus" और "Doctor of the Church" की उपाधियाँ मिलीं।
वह यूरोप में धार्मिक सुधार और तर्कपूर्ण धर्मशास्त्र के प्रतीक बने।


प्रमुख रचनाएँ

  • Summa Theologica

  • Summa Contra Gentiles

  • Commentary on the Sentences

  • Commentary on Aristotle’s Politics

Summa Theologica उनकी सबसे प्रसिद्ध और गूढ़ रचना है, जिसमें धर्म, राजनीति, न्याय, नैतिकता और कानून पर विस्तृत विचार हैं।


अक्विनास का राजनीतिक दर्शन

1. धर्म और तर्क का समन्वय

“Grace does not destroy nature, but perfects it.”

अक्विनास के अनुसार ईश्वर द्वारा दिया गया धर्म (Faith) और मानव का तर्क (Reason) एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
जहां प्लेटो और अरस्तु ने तर्क को केंद्र में रखा, वहीं अक्विनास ने ईश्वर को अंतिम सत्य माना लेकिन तर्क को भी स्वीकारा।


2. चार प्रकार के कानून (Four Kinds of Law)

i. Eternal Law (शाश्वत नियम):

ईश्वर की बुद्धि में निहित नियम, जिससे संपूर्ण सृष्टि संचालित होती है।

ii. Divine Law (दैवी नियम):

वह नियम जो ईश्वर ने मनुष्य को धर्मग्रंथों के माध्यम से प्रदान किए, जैसे कि बाइबल।

iii. Natural Law (प्राकृतिक नियम):

वह नियम जो मनुष्य तर्क और प्राकृतिक विवेक द्वारा समझता है — जैसे न्याय, भलाई, जीवन रक्षा।

iv. Human Law (मानव नियम):

समाज द्वारा बनाया गया विधिक ढांचा, जो प्राकृतिक नियमों पर आधारित होना चाहिए।

“Unjust law is no law at all.”
(जो कानून न्यायसंगत नहीं है, वह कानून कहलाने योग्य नहीं है।)


3. राज्य का उद्देश्य

राज्य का उद्देश्य केवल सुरक्षा और व्यवस्था नहीं, बल्कि नैतिक कल्याण और परम उद्देश्य (Ultimate End) — यानी ईश्वर तक पहुँच है।

अक्विनास के अनुसार राज्य:

  • प्राकृतिक संस्था है

  • मानव की नैतिक पूर्णता के लिए आवश्यक है

  • चर्च के अधीन नहीं, पर समन्वय में होना चाहिए


4. चर्च और राज्य का संबंध

संत ऑगस्टीन के 'City of God' के विपरीत, अक्विनास ने चर्च और राज्य को द्वैध व्यवस्था के रूप में देखा।

संस्थाकार्य
राज्यसामाजिक और नैतिक व्यवस्था बनाए रखना
चर्चआत्मिक और धार्मिक जीवन को मार्ग देना

दोनों का उद्देश्य है — मनुष्य की परम मुक्ति (Salvation)


5. राजनीतिक सत्ता का स्रोत

“Power comes from God but through natural order.”

सत्ता ईश्वर से उत्पन्न होती है, लेकिन उसका अभिव्यक्ति माध्यम समाज और व्यक्ति की स्वीकृति है।
राजा या शासक ईश्वर का प्रतिनिधि नहीं है, बल्कि समाज का नैतिक संरक्षक है।

यदि शासक अन्यायी हो जाए:

  • उसकी सत्ता का विरोध किया जा सकता है

  • लेकिन विद्रोह का अधिकार सीमित है और समाज हित में होना चाहिए


6. न्याय और समानता की अवधारणा

अक्विनास ने दो प्रकार के न्याय को परिभाषित किया:

i. Distributive Justice (वितरणात्मक न्याय):

हर व्यक्ति को उसकी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार संसाधन मिलना चाहिए।

ii. Commutative Justice (विनिमय न्याय):

सभी के साथ लेन-देन में निष्पक्षता होनी चाहिए।


7. शासक और संविधान

अक्विनास ने कहा कि:

  • सबसे अच्छा शासन राजा का शासन (Monarchy) है — यदि वह न्यायप्रिय हो

  • सबसे बुरा शासन तानाशाही (Tyranny) है — यदि शासक निजी स्वार्थ में शासन करे

  • संविधान समाज के नैतिक मूल्यों और प्राकृतिक नियमों पर आधारित होना चाहिए


8. अरस्तु पर आधारित राजनीतिक दृष्टिकोण

अरस्तु के विचारों को अक्विनास ने ईसाई धर्मशास्त्र से जोड़ा:

  • अरस्तु का 'प्राकृतिक न्याय' → अक्विनास का 'Natural Law'

  • अरस्तु की राजनीति → अक्विनास की नैतिक राजनीति

  • अरस्तु की 'विवेक की सत्ता' → अक्विनास की 'दैवी मार्गदर्शन युक्त विवेक'


अक्विनास और आधुनिक राजनीतिक चिंतन

तत्वअक्विनास का प्रभाव
मानवाधिकारNatural Law ने आधुनिक मानवाधिकार की नींव रखी
न्यायशास्त्रUnjust Law की अवधारणा – मार्टिन लूथर किंग जूनियर तक पहुँची
धर्म-राज्य संबंधChurch और State का सीमित सहयोगात्मक विभाजन
राज्य का उद्देश्यनैतिक और आध्यात्मिक विकास – आधुनिक लोकतंत्रों में भी चिंतन का आधार

आलोचना

आलोचनाविचारक
धार्मिक पक्षपातधर्मनिरपेक्षतावादी
विद्रोह के अधिकार को सीमित कियाउदारवादी परंपरा
चर्च को राज्य के समान रखाआधुनिक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र
महिलाओं की भागीदारी को अनदेखा कियानारीवादी चिंतन

निष्कर्ष

संत थॉमस अक्विनास ने राजनीति को केवल राज्य और सत्ता तक सीमित न रखकर उसे नैतिकता, कानून और धर्म से जोड़ा।
उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य तभी वैध है जब वह नैतिकता और न्याय का पालन करता हो।
उनकी दृष्टि ने न केवल मध्यकालीन यूरोपीय राजनीति को आकार दिया, बल्कि आज के संवैधानिक और मानवाधिकार सिद्धांतों की नींव भी रखी।


संदर्भ

1. Thomas Aquinas – Summa Theologica
2. Brian Tierney – The Crisis of Church and State
3. Quentin Skinner – The Foundations of Modern Political Thought
4. Ernest Fortin – Political Philosophy and the Common Good
5. George Sabine – A History of Political Theory

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