अरस्तु: राजनीतिक यथार्थवाद और नागरिकता का दर्शन

अरस्तु (384–322 ई.पू.) प्लेटो के शिष्य थे, लेकिन विचारों में उन्होंने अपने गुरु से एकदम अलग राह पकड़ी। जहां प्लेटो आदर्शों की ओर झुकते थे, वहीं अरस्तु व्यावहारिक यथार्थवाद के पक्षधर थे।

उन्होंने राजनीति को नैतिकता से जोड़ने के बजाय एक स्वतंत्र वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में देखा।

उनकी प्रसिद्ध रचना “Politics” (राजनीति) आज भी राजनीतिक सिद्धांत, नागरिकता, संविधान और सरकार की संरचना को समझने का मूल आधार है।


जीवन परिचय

  • जन्म: 384 ई.पू., स्टैगिरा (मकदूनिया)

  • मृत्यु: 322 ई.पू., खाल्किस

  • गुरु: प्लेटो

  • शिष्य: सिकंदर महान

  • संस्थान: लायसीअम (Lyceum)

अरस्तु ने प्लेटो की अकादमी में 20 वर्ष तक अध्ययन किया, फिर एथेंस छोड़कर लायसीअम नामक स्कूल की स्थापना की।
वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने प्रेक्षण (Observation) को दर्शन और विज्ञान का आधार बनाया।


प्रमुख रचनाएँ

  • Politics

  • Nicomachean Ethics

  • Constitution of Athens

  • Metaphysics

  • Rhetoric

  • Poetics

  • De Anima

इनमें Politics और Ethics राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।


अरस्तु का राजनीतिक दर्शन

1. राजनीति की परिभाषा

अरस्तु के अनुसार:

“Man is by nature a political animal.”
(मनुष्य स्वभाव से ही एक राजनीतिक प्राणी है।)

मनुष्य समाज और राज्य के बिना पूर्ण नहीं हो सकता। उसके अनुसार राज्य एक प्राकृतिक संस्था है जो परिवार और गाँव से विकसित होकर पूर्णता को प्राप्त करता है।

राज्य की उत्पत्ति:

  • परिवार → गाँव → राज्य

  • उद्देश्य: सर्वोत्तम जीवन (Good Life) की प्राप्ति


2. नागरिकता की अवधारणा (Citizenship)

अरस्तु ने नागरिक को केवल राज्य में रहने वाला नहीं माना, बल्कि वह जो राज्य के निर्णयों में भाग ले, वही नागरिक कहलाता है।

विशेषताएँ:

  • नागरिकता सक्रिय भागीदारी पर आधारित है

  • केवल जन्म नहीं, योग्यता और भागीदारी से नागरिकता मिलती है

  • महिलाओं, दासों और मजदूरों को उन्होंने नागरिक नहीं माना — (आलोचना का विषय)


3. संविधान और शासन के प्रकार (Types of Government)

अरस्तु ने 158 राज्यों के संविधान का अध्ययन किया और शासन को दो आधारों पर वर्गीकृत किया:

i) कितने लोग शासन कर रहे हैं?

ii) क्या वह जनहित में है या निजी हित में?

शासन का रूपअच्छे रूपविकृत रूप
एक व्यक्तिराजतंत्र (Monarchy)तानाशाही (Tyranny)
कुछ लोगकुलीनतंत्र (Aristocracy)अभिजाततंत्र (Oligarchy)
बहुसंख्यकलोकतंत्र (Polity)जनतंत्र (Democracy – जब यह भीड़तंत्र बन जाए)

सबसे अच्छा शासन:

“Polity” – जिसमें मध्य वर्ग की सत्ता हो और जनहित सर्वोपरि हो।


4. मध्य मार्ग (Doctrine of Mean)

अरस्तु ने प्रत्येक नीति और नैतिकता में मध्यमार्ग को सर्वोत्तम बताया।

उदाहरण:

  • साहस (Courage) = कायरता और अतिसाहस के बीच

  • उदारता = कृपणता और अपव्यय के बीच

  • राजनीति = अराजकता और तानाशाही के बीच संतुलन

राज्य का कार्य है इस संतुलन को बनाए रखना।


5. राज्य का उद्देश्य

राज्य का लक्ष्य मात्र जीवन यापन नहीं, बल्कि “उत्तम जीवन” (Eudaimonia) है।

“The state exists not merely for the sake of life, but for the sake of good life.”

इसलिए राज्य केवल रक्षा, न्याय या कानून तक सीमित नहीं – वह नैतिक व बौद्धिक विकास का साधन होना चाहिए।


6. सर्वोत्तम राज्य की परिकल्पना (Ideal State)

अरस्तु ने Plato की तरह आदर्श राज्य की परिकल्पना की, लेकिन यथार्थ के निकट।

विशेषताएँ:

  • मध्य वर्ग की सत्ता

  • शिक्षा पर राज्य का नियंत्रण

  • नागरिकों में नैतिकता और सद्गुण

  • जनसंख्या सीमित

  • दास प्रथा (उस समय सामान्य) बनी रहे – (आलोचना योग्य)


अरस्तु और भारतीय दर्शन

  • अरस्तु के “मध्य मार्ग” की अवधारणा बुद्ध के 'मध्यमार्ग' से मिलती है।

  • “राज्य = आत्मा की पूर्णता” की अवधारणा गीता और उपनिषदों में वर्णित धर्म के सामूहिक स्वरूप से जुड़ी प्रतीत होती है।


अरस्तु की आलोचना

आलोचनाआलोचक
नागरिकता की संकीर्ण परिभाषाआधुनिक लोकतंत्रवादी
महिलाओं और दासों को बाहर रखानारीवादी और मानवाधिकार समर्थक
अत्यधिक यथार्थवाद ने आदर्शों की उपेक्षा कीप्लेटो समर्थक
दास प्रथा को नैतिक ठहरानाआधुनिक मानवाधिकार दृष्टिकोण से अनुपयुक्त

अरस्तु का प्रभाव

  • रोमन विचारधारा – उनकी संविधान पर व्याख्या ने रोमन लॉ को प्रभावित किया
  • मध्यकालीन ईसाई दर्शन – थॉमस अक्विनास ने अरस्तु को धर्म से जोड़ा
  • अरब दार्शनिक (इब्न रुश्द आदि) – अरस्तु को 'अल मु'ल्लिम' कहा गया
  • आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत – शासन, नागरिकता, संविधान की आज की समझ उन्हीं से विकसित हुई

अरस्तु और प्लेटो: तुलना

तत्वप्लेटोअरस्तु
दृष्टिकोणआदर्शवादीयथार्थवादी
राज्य की उत्पत्तिनैतिक आवश्यकताप्राकृतिक विकास
शासनदार्शनिक-राजामध्यवर्गीय नीति
नागरिकतानैतिक गुणों परराजनीतिक भागीदारी पर
ज्ञान का स्रोतआदर्शों की दुनियाअनुभव और तर्क

निष्कर्ष

अरस्तु वह पहले विचारक थे जिन्होंने राजनीति को वैज्ञानिक रूप में व्यवस्थित किया।
उन्होंने शासन के प्रकार, नागरिकता, संविधान, न्याय, नैतिकता और शिक्षा जैसे विषयों पर जो दृष्टिकोण दिया, वह आज भी लोकतांत्रिक समाजों की रीढ़ बना हुआ है।
हालाँकि उनकी कुछ मान्यताएँ जैसे दास प्रथा या महिलाओं की भागीदारी से इंकार आज अस्वीकार्य हैं, फिर भी राजनीतिक दर्शन को यथार्थ से जोड़ने में उनका योगदान अतुलनीय है।


संदर्भ (References)

1. Aristotle – Politics
2. Aristotle – Nicomachean Ethics
3. George Sabine – A History of Political Theory
4. Ernest Barker – The Political Thought of Plato and Aristotle
5. Bertrand Russell – History of Western Philosophy
6. Mulgan, R.G. – Aristotle's Political Theory

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