
भारतीय रिजर्व बैंक, जिसे संक्षेप में आरबीआई कहा जाता है, भारत की आर्थिक रीढ़ की हड्डी माना जाता है। यह न केवल देश की मुद्रा व्यवस्था को नियंत्रित करता है, बल्कि बैंकिंग क्षेत्र को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए आवश्यक सभी नीतियों, विनियमों और प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है। देश के मौद्रिक नियंत्रण से लेकर वित्तीय स्थिरता बनाए रखने तक, रिजर्व बैंक की भूमिका अनूठी और अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में हम आरबीआई के ऐतिहासिक गठन, उसकी संरचना, कार्यों और कुछ कम ज्ञात तथ्यों को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करेंगे।
आरबीआई का गठन और इतिहास
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना 1 अप्रैल 1935 को ब्रिटिश भारत सरकार के अधीन "रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934" के अंतर्गत की गई थी। इसकी सिफारिश हिल्टन यंग कमीशन (Hilton Young Commission) ने की थी, जिसे 1926 में गठित किया गया था। इसका उद्देश्य एक केंद्रीय बैंक की स्थापना करना था जो भारत में मौद्रिक नीति का संचालन कर सके और सरकार के साथ-साथ वाणिज्यिक बैंकों के लिए एक केंद्रीय इकाई के रूप में कार्य कर सके।
शुरुआत में यह एक निजी संस्थान था और इसके अधिकतर शेयरधारक निजी लोग थे। लेकिन 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया और इसे पूर्ण रूप से भारत सरकार के स्वामित्व में ले लिया गया। इसके बाद से यह भारतीय संसद के अधीन कार्य करता है और भारत के राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी है।
आरबीआई का मुख्यालय और संगठनात्मक ढांचा
आरबीआई का मुख्यालय शुरू में कोलकाता में था लेकिन 1937 में इसे मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया, जहां यह आज भी स्थित है। इसका केंद्रीय कार्यालय मुंबई के फोर्ट क्षेत्र में स्थित है। इसके अलावा देश भर में इसके 29 क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जो लगभग सभी राज्यों की राजधानियों में स्थित हैं।
आरबीआई का नेतृत्व एक गवर्नर करता है, जिसे भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। उनके साथ चार डिप्टी गवर्नर और कई कार्यकारी निदेशक होते हैं जो विभिन्न विभागों का संचालन करते हैं। गवर्नर की नियुक्ति तीन वर्षों के लिए की जाती है, जिसे आवश्यकता अनुसार बढ़ाया जा सकता है।
आरबीआई के प्रमुख कार्य
भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य अत्यंत व्यापक और बहुआयामी हैं। ये कार्य निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं:
1. मौद्रिक नीति का संचालन
आरबीआई मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए मौद्रिक नीति का संचालन करता है। इसके अंतर्गत वह रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, बैंक रेट, नकद आरक्षित अनुपात (CRR), और वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) जैसे उपकरणों का उपयोग करता है।
2. करेंसी नोटों की छपाई और आपूर्ति
आरबीआई देश में करेंसी नोटों की छपाई, वितरण और विनिमय का कार्य करता है। वह भारतीय मुद्रा प्रणाली को नियंत्रित करता है और नकली मुद्रा से निपटने के लिए सुरक्षा उपाय करता है। जबकि सिक्कों की ढलाई और वितरण का कार्य भारत सरकार करती है।
3. 'बैंकों का बैंक'
आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है, उनके लिए नीतियां बनाता है और उनकी निगरानी करता है। यह सभी बैंकों के लिए अंतिम ऋणदाता (Lender of Last Resort) के रूप में कार्य करता है।
4. विदेशी मुद्रा भंडार और विनिमय दर नियंत्रण
रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करता है और विदेशी विनिमय बाजारों में स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक हस्तक्षेप करता है। यह फॉरेक्स बाजार के प्रमुख नियामकों में से एक है।
5. सरकारी बैंकिंग कार्य
आरबीआई भारत सरकार और कई राज्य सरकारों के लिए बैंकिंग एजेंट के रूप में कार्य करता है। यह उनके लिए खातों का संचालन, भुगतान और उधारी प्रबंधन करता है।
आरबीआई से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
1. लोगो की उत्पत्ति
रिजर्व बैंक का जो लोगो आज हम देखते हैं, वह ईस्ट इंडिया कंपनी की डबल मोहर से प्रेरित है। हालांकि इसमें कुछ बदलाव किए गए हैं और एक बाघ और ताड़ के पेड़ का चित्र जोड़ा गया है जो भारत की संस्कृति और आर्थिक ताकत को दर्शाता है।
2. एक निजी संस्था से सरकारी संस्था तक
आरबीआई की स्थापना 1935 में एक निजी संस्था के रूप में हुई थी। लेकिन 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और यह भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व में आ गया।
3. आरबीआई का विशेष वित्तीय वर्ष
जहां भारत सरकार का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च होता है, वहीं आरबीआई का वित्तीय वर्ष 1 जुलाई से 30 जून तक होता है।
4. केवल करेंसी नोट छापता है
रिजर्व बैंक केवल करेंसी नोट छापता है। जबकि सिक्कों की छपाई और वितरण भारत सरकार द्वारा की जाती है। करेंसी नोटों में 2, 5, 10, 20, 50, 100, 200, 500 और 2000 रुपये के मूल्यवर्ग होते हैं।
5. पहली महिला डिप्टी गवर्नर
के. जे. उडेशी वर्ष 2003 में भारतीय रिजर्व बैंक की पहली महिला डिप्टी गवर्नर बनीं। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी और महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित हुई।
6. उच्च मूल्यवर्ग के नोट
रिजर्व बैंक ने 1938 में पहली बार 5,000 और 10,000 रुपये के नोट छापे थे। इसके बाद 1954 में फिर से इन मूल्यवर्ग के नोट जारी किए गए। हालांकि 1978 में इन नोटों को बंद कर दिया गया क्योंकि यह कालेधन और हवाला कारोबार को बढ़ावा दे रहे थे।
7. पाकिस्तान और म्यांमार का भी सेंट्रल बैंक
भारत के अलावा आरबीआई ने पाकिस्तान और म्यांमार के लिए भी केंद्रीय बैंक की भूमिका निभाई थी। जुलाई 1948 तक यह पाकिस्तान का और अप्रैल 1947 तक म्यांमार का सेंट्रल बैंक था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है जो भारत की वित्तीय शक्ति को दर्शाता है।
8. कर्मचारियों की श्रेणियां
आरबीआई में द्वितीय श्रेणी के कर्मचारी नहीं होते। इसमें श्रेणी 1 (अधिकारी), श्रेणी 3 (सहायक) और श्रेणी 4 (चपरासी आदि) के लगभग 17,000 कर्मचारी कार्यरत हैं।
9. मनमोहन सिंह: गवर्नर से प्रधानमंत्री तक
डॉ. मनमोहन सिंह अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने आरबीआई के गवर्नर और भारत के प्रधानमंत्री दोनों पदों पर कार्य किया है। उन्होंने 1982 से 1985 तक आरबीआई के गवर्नर के रूप में सेवाएं दी थीं।
10. सी. डी. देशमुख: पहले भारतीय गवर्नर
सी. डी. देशमुख पहले भारतीय थे जिन्होंने आरबीआई के गवर्नर के रूप में कार्य किया। वह तीसरे गवर्नर थे और 1951-52 के अंतरिम बजट में भारत के वित्त मंत्री भी रहे। वे बैंकों के राष्ट्रीयकरण के खिलाफ थे।
11. मौद्रिक संग्रहालय
मुंबई स्थित आरबीआई हेडक्वार्टर में एक अद्वितीय मौद्रिक संग्रहालय है जहाँ प्राचीन से लेकर आधुनिक युग तक की मुद्रा, बैंकिंग उपकरण, और वित्तीय इतिहास को प्रदर्शित किया गया है।
12. 29 क्षेत्रीय कार्यालय
रिजर्व बैंक के देश भर में 29 कार्यालय हैं जो मुख्य रूप से राज्यों की राजधानियों में स्थित हैं। यह कार्यालय विभिन्न प्रकार की बैंकिंग सेवाएं और निरीक्षण संबंधी कार्य करते हैं।
निष्कर्ष
भारतीय रिजर्व बैंक न केवल देश की आर्थिक नीति का संचालन करता है, बल्कि आम नागरिक की आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता को भी सुनिश्चित करता है। उसकी कार्यशैली पारदर्शिता, नियमन और विकास को केंद्र में रखकर बनाई गई है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में आरबीआई की भूमिका मात्र एक केंद्रीय बैंक की नहीं, बल्कि एक संरक्षक और मार्गदर्शक की भी है।
आज जब भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है, तब आरबीआई की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उसकी नीतियां, निगरानी और संचालन की दक्षता भारत की वित्तीय स्थिरता की गारंटी हैं। यही कारण है कि आरबीआई को 'बैंकों का बैंक' और 'भारत की आर्थिक आत्मा' कहा जाता है।