

अजीब रात का मंजर है,
दिल में है दर्द बहुत... जैसे लगा कोई खंजर है,
ना चाहते हुए भी... सोना है
सपनो की दुनिया में... फिर जी भर के रोना है,
शायर लोग बड़ी तारीफें करते है... चाँद की,
आशिकी में बना देते है उसे... सूरत अपने यार की,
अरे अनगिनत तारों में घिरा आसमां सारा है,
पर चाँद तो आसमां में ... अकेला नज़र आता है,
रात के उस अजीब मंजर में... चाँद का गुरूर तब टूट जाता है,
जब मगरूर हुए तारो के बीच.. अकेला टिमटिमाता सबको दिख जाता है,
मित्रों, इन अनोखी मेरी बातों को पढ़कर परेशान ना होना,
पसंद आये न आये... लेकिन एक बार "शुभ रात्रि" कहकर सो जाना।।
****पीताम्बर शम्भू ****