"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

शुभ रात्रि

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अजीब रात का मंजर है,
दिल में है दर्द बहुत... जैसे लगा कोई खंजर है,

ना चाहते हुए भी... सोना है
सपनो की दुनिया में... फिर जी भर के रोना है,

शायर लोग बड़ी तारीफें करते है... चाँद की,
आशिकी में बना देते है उसे... सूरत अपने यार की,
अरे अनगिनत तारों में घिरा आसमां सारा है,
पर चाँद तो आसमां में ... अकेला नज़र आता है,

रात के उस अजीब मंजर में... चाँद का गुरूर तब टूट जाता है,
जब मगरूर हुए तारो के बीच.. अकेला टिमटिमाता सबको दिख जाता है,

मित्रों, इन अनोखी मेरी बातों को पढ़कर परेशान ना होना,
पसंद आये न आये... लेकिन एक बार "शुभ रात्रि" कहकर सो जाना।।

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।