वक्त... बे-वक्त... हर वक्त ...


वक्त... बे-वक्त... हर वक्त ...
कुछ कहता है हमसे,
...
समझ नहीं पाता कोई... जो चाहता है वो हमसे 
बीता हुआ वक्त इतिहास बनाता है,
आने वाला वक्त विश्वास दिलाता है,

है कुछ कर सकने का जज्बा... तो मंजिलें आसां है...
जमीं पर चलने वालों की ही... एक अलग पहचान है,

हर दिशा में नहीं... किसी एक तरफ ही चलना है,
वक्त रहते... ज़िन्दगी में बहुत कुछ करना है,
दुनिया ठुकरादे हमको... तो गम नहीं...
तकदीर के दिए गम भी तो ज़िन्दगी में कम नहीं,

ग़मों में जीना ज़िन्दगी है,
तभी तो मिलनी हर ख़ुशी है,
.. 
माना कि आएंगे... कठिन रास्ते भी,
लेकिन हर कसौटी पर खरे उतारना है,
जो भी आएँगी मुश्किलें... उनसे डटकर लड़ना है,

हर कदम को ... संभलकर रखो और ऐसी ही एक आदत बना लो, 
चलते रहो वक्त के साथ और वक्त को ही ढाल बना लो,
...
किस्मत ज़िन्दगी से ज्यादा तब चमकती है
जब वक्त के साथ ... हर कमी खलती है,
नकामियाब होने से दुखी क्यों होना,
बिना कोशिश करे, किस बात का रोना,
...
बस कामियाबी का एक आधार जरूरी है,
वक्त है साथ तो क्या मजबूरी है,
मुश्किल पाठों पर भी हमको मार्ग बनाना है,
जो कोई न कर सका... ऐसा कर दिखाना है,
...
वक्त...बे-वक्त... हर वक्त ... कुछ न कुछ सीखा कर जायेगा,
जो ना समझे वक्त की बात... वो वक्त वक्त पर बे-वक्त पछतायेगा।।
****पीताम्बर शम्भू****
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