क्या कहूँ… किससे कहूँ …


क्या कहूँ… किससे कहूँ 
ये बातें में कैसे करूँ,

वो कसमें, वो किस्से, 
वो अनपढ़े चेहरों की दास्ताँ,
दिल ही दिल में समेटे हूँ,

यक़ीनन बेहद इम्तहान वाले दौर में हूँ,
फरमाइशों और आजमाइशों
में कैद हूँ,

दिल की गहराइयों से हूँ बैचैन,
कोई आओ, दुआ दे जाओ मुझे 
दुआ नही देनी तो सजा ही दे जाओ मुझे। 
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