काफी दिन हुए बिना लिखे


काफी दिन हुए बिना लिखे
 लिखा सब कुछ जो रहा ध्यान,
अब लिख रहा हूँ अलग
जो नहीं समझना आसान,

निकला था घूमने एक दिन
लिए दिल में कुछ अरमान,
चला बस सीधा ही सीधा
कहीं शान कहीं शमशान,

था खाली मन मेरा
ना दिमाग में कुछ ना कदमो का था ध्यान,

कुछ दूर चलकर… पैर मेरे किसी से टकरा गए,
 जब वो ढ़ेर बोला :- ए दुनिया वाले !! संभाल कर रख अपने कदम। मुझे गुस्सा बहुत आता है
अगर होता ज़िंदा तो दिखता क्या होता तेरा अंजाम?
जवाब दिया मैने :- ओ गुज़रे हुए बे-ईमान, मैं नहीं डरता चाहे जो हो अंजाम,
मरकर, ख़ाक होकर भी तू अभी यहीं पड़ा है
शायद तेरे पाप के घड़े की यही सजा है
ना कुदरत, ना इंसान, ना ईमान का तुझे पता है
जो हुआ तेरे साथ अब लगता है यही तेरे लिए अच्छा है।

+++>>> आगे बाकी है

Post a Comment

Previous Post Next Post