.jpg)
अदम्य साहस और सशस्त्र क्रांति की निरुपम विभूति पंडित चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर हमारा उनको शत् शत् नमन ...
चन्द्रशेखर आज़ाद हमेशा सत्य बोलते थे। एक बार की घटना है आजाद पुलिस से छिपकर जंगल में साधु के भेष में रह रहे थे तभी वहाँ एक दिन पुलिस आ गयी। दैवयोग से पुलिस उन्हीं के पास पहुँच भी गयी। पुलिस ने साधु वेश धारी आजाद से पूछा-"बाबा!आपने आजाद को देखा है क्या?" साधु भेषधारी आजाद तपाक से बोले- "बच्चा आजाद को क्या देखना, हम तो हमेशा आजाद रहते हें हम भी तो आजाद हैं।" पुलिस समझी बाबा सच बोल रहा है, वह शायद गलत जगह आ गयी है अत: हाथ जोडकर माफी माँगी और उलटे पैरों वापस लौट गयी।


चन्द्रशेखर आज़ाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ किया गया आन्दोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के सोलह वर्षों बाद १५ अगस्त सन् १९४७ को हिन्दुस्तान की आजादी का उनका सपना पूरा तो हुआ किन्तु वे उसे जीते जी देख न सके। आजाद अपने दल के सभी क्रान्तिकारियों में बड़े आदर की दृष्टि से देखे जाते थे। सभी उन्हें पण्डितजी ही कहकर सम्बोधित किया करते थे। वे सच्चे अर्थों में पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' के वास्तविक उत्तराधिकारी जो थे।
श्रद्धाञ्जलि:-
"चन्द्रशेखर की मृत्यु से मेँ आहत हूँ। ऐसे व्यक्ति युग में एक बार ही जन्म लेते हैं। फिर भी हमें अहिंसक रूप से ही विरोध करना चाहिये।"
- महात्मा गाँधी
"
"चन्द्रशेखर आजाद की शहादत से पूरे देश में आजादी के आन्दोलन का नये रूप में शंखनाद होगा। आजाद की शहादत को हिन्दुस्तान हमेशा याद रखेगा।"
- जवाहर लाल नेहरू
"पण्डितजी की मृत्यु मेरी निजी क्षति है। मैं इससे कभी उबर नहीं सकता।"
- मदन मोहन मालवीय "
देश ने एक सच्चा सिपाही खो दिया।"
- मोहम्मद अली जिन्ना